Book Title: Mahabal Malayasundari Charitra
Author(s): Tilakvijay, Jayanandsuri
Publisher: Ek Sadgruhastha

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Page 248
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र वैराग्य और संयम आत्मसाधन करने के लिए सावधान हो गया । पुण्योदय के कारण प्रथम से ही उसके अन्दर आत्म जागृति पैदा हो गयी थी, धर्मदेशना से उसका पूरापोषण हो गया । धर्मोपदेश समाप्त होने पर सपरिवार नगर में आ गया । उसने शतबल सहस्रबल और मलयासुन्दरी को बुलाकर उनके समक्ष अपनी संयम अंगीकार करने की आतुरता बतलायी । जब से अपना पूर्वभव वृत्तान्त सुना था मलयासुन्दरी तो तब से ही संसार से विरक्त थी । वह सिर्फ पति की इच्छा के अधीन होकर इतने समय तक गृहवास में रही थी। महाबल के विचार सुनकर उसके उत्साह में और भी वृद्धि हुई । सांसारिक स्नेह बन्धनों को तोड़कर वह पति के साथ ही संयम ग्रहण करने को तैयार हो गयी । सागरतिलक की राजधानी प्रथम से ही शतबल को सौंप दी गयी थी । अब पृथ्वीस्थानपुर की राजगद्दी पर सहस्रबल को बैठाया गया । नवीन राजा सहस्रबल और शतबल ने माता - पिता के संयम ग्रहण करने के अवसर पर नगर में बड़े समारोह से अष्टाह्निका महोत्सव किया । महाबल के साथ अनेक राजपुरुषों और मलयासुन्दरी के साथ अनेक राजकुल की स्त्रियों ने संयम अंगीकार किया । दीक्षा ग्रहण करने पर संयम शिक्षण के लिए मलयासुन्दरी आदि को सपरिवार महत्तरा साध्वी को सौंप दिया गया । I राजर्षि महाबल संयमोचित शिक्षण ग्रहण करते हुए कुछ दिन पृथ्वीस्थानपुर में रहकर गुरु महाराज के साथ अन्यत्र विहार कर गया । साध्वी मलयासुन्दरी भी अपनी गुरु महत्तरा साध्वी के साथ अन्यत्र विहार कर गयी । अब वे दोनों जुदे - जुदे स्थलों में विचरकर ज्ञानध्यान से अपनी आत्मा को कृतार्थ करते थे । कभी - कभी विचरते हुए सागरतिलक और पृथ्वीस्थान आकर दोनों पुत्रों को धर्म मार्ग में प्रेरित करते और आत्मगुण घातक व्यसनों से दूर रहने का उपदेश देते थे । वे दोनों भाई भी परस्पर प्रीतिपरायण होकर सद्गुरु के उपदेश से धर्मध्यान में एवं अपनी- अपनी प्रजा को हर एक प्रकार से सुखी बनाने में सावधान रहते थे । माता - पिता की धर्म प्रेरणा से वे दोनों राजा धर्म 231

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