Book Title: Mahabal Malayasundari Charitra
Author(s): Tilakvijay, Jayanandsuri
Publisher: Ek Sadgruhastha

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Page 250
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र वैराग्य और संयम को सहर्ष यह समाचार सुनाया कि महाराज ! आपके पूज्य पिता जी महामुनि महाबल राजर्षि आज शहर से बाहर सरकारी बगीचे के पास पधारे हैं और वहाँ पर ध्यान मुद्रा में ध्यानस्थ हो खड़े हैं। इस खुश खबर को सुनकर राजा शतबल के हर्ष का पार न रहा । उसने अपने पूज्य पिता और धर्म गुरु का समागम समाचार देनेवाले वनमाली को बहुत - सा प्रीतिदान देकर विदा दिया। राजा ने विचार किया इस वक्त सन्ध्या समय हो गया है, रात्रि का प्रारम्भ होने आया है, इसलिए सुबह प्रातःकाल में ही सर्व परिवार के साथ जाकर पूज्य पिता श्री गुरु महाराज को वन्दन करूँगा। सचमुच ही मैं भाग्यवान हूँ, मेरे पुण्योदय से ही गुरु महाराज ने यहाँ पधारकर इस शहर को पवित्र किया है । इस तरह बोलते हुए राजा ने उस दिशा की ओर जिधर त्याग मूर्ति महाबल राजर्षि ध्यान में खड़ा था चलकर जमीन पर मस्तक लगाकर पंचाँग नमस्कार किया । सुबह होने पर पूज्य पिताजी का दर्शन होगा, उनके मुखारविन्द से धर्मोपदेश सुनूंगा और उसके उपदेशानुसार चलने का भर शक प्रयत्न करूँगा । इन्हीं विचारों की उत्सुकता में राजा ने बड़े कष्ट से रात बितायी। 233

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