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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
पूर्वभव वृत्तान्त हुए पँजावे में से सुन्दरी ने आग लाने की आज्ञा की थी वह सुन्दर नौकर मरकर पृथ्वी स्थानपुर के बाहर वटवृक्ष पर व्यन्तर होकर रहा था । जब महाबल योगी की प्रेरणा से लोहखुर चोर के मृतक को लेने उस वटवृक्ष के पास गया तब उस व्यन्तर देव ने ज्ञानबल से महाबल को पहचान लिया और उसने जो प्रियमित्र के भव में अपनी पत्नी का वचन बढ़ाने के लिए उसे यह कहा था कि इसके पैर बड़ की शाखा से बाँध दो जिससे इसके पैरों में काँटे न लगे । इत्यादि बातें स्मरण होने से उसने विचारा कि इसने स्वामीपन के मद में आकर उस वक्त मेरा तिरस्कार किया था । इस समय मैं भी इसे इसके वचनानुसार कुछ चमत्कार बतलाऊं तो ठीक हो । यह सोचकर उस व्यन्तर ने मुरदे के शरीर में प्रवेश किया और मुरदे के मुख से बोला कि - "अरे मूर्ख ! मुझे वटवृक्ष की शाखा से बँधा देखकर क्यों हँसता है, तूं खुद भी आनेवाली रात में इसी वटवृक्ष की शाखा पर बाँधा जायगा और ऊपर पैर अधो मुख होकर लटकाया जायगा । ठीक उस व्यन्तर देव के कथनानुसार ही दूसरे दिन महाबल उस वटवृक्ष की शाखा से लटकाया गया था । पूर्वजन्म में आक्रोश के वचनों द्वारा जो नौकर को दुःख दिया था, उसी अशुभ कर्म के परिणाम में वटवृक्ष की शाखा से बँधना पड़ा।
एक दिन रुद्रा ने लोभ के वश होकर अपने पति की अंगूठी चुराली थी। उसे यह काम करते हुए सुन्दर ने देख लिया था । घर में सब जगह ढूँढने पर भी जब वह अंगूठी न मिली तब प्रियमित्र बहुत ही व्याकुल होने लगा । अपने स्वामी को व्याकुल देख और अपने पर चोरी का वहम न आवे इस कारण सुन्दर ने रुद्रा के समक्ष ही प्रियमित्र से कहा स्वामिन् ! आप किस लिए व्याकुल होते हैं! आपकी अंगूठी रुद्रा के पास है, आप इनसे माँग लेवें । ये वाक्य सुनकर रुद्रा रोष में आकर बोल उठी "अरे ! दुष्ट कपटी नकटे सुन्दर ! तूं झूठ क्यों बोलता है ? मैंने कब अंगूठी ली है ? रुद्रा के तिरस्कार पूर्ण शब्द सुनकर सुन्दर को बड़ा दुःख हुआ । परन्तु पराधीन होने के कारण उसने मौन रहकर रुद्रा के वचन सहनकर लिये । असत्य उत्तर देनेवाली अपनी स्वामिनी को वह और क्या कह सकता था ? यह आप अपने किये का फल भोगेगी यह समझकर वह चुप रह गया। प्रियमित्र ने शाम दाम आदि नीति से रुद्रा के पास से अपनी अंगूठी निकाल
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