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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
पूर्वभव वृत्तान्त
ने मदनप्रिय के अभिप्राय को तिरस्कार का भाव बतलाकर ठुकरा दिया और फिर से मेरे समक्ष आप ऐसा अभिप्राय प्रकट न करें । यह भी उसे साम्यभाव से समझा दिया । परन्तु मदनप्रिय मदन के अधीन होने से अपने अभिप्राय से पीछे न हटा। वह जब कभी समय पाता तब सुन्दरी से वही बात छेड़ता । सुन्दरी उसे समझाने का प्रयत्न करती, परन्तु मदन की आतुरता में और भी वृद्धि होती थी।
एक दिन प्रियसुन्दरी के सिवा घर में अन्य कोई न था । मदन आकर सुंदरी से फिर वही प्रार्थना करने लगा । सुंदरी उसे साम दामादि नीति के वचनों से समझा रही थी । दैव वशात् उसी समय बाहर से वहाँ पर अकस्मात् प्रियमित्र आ पहुँचा । उसने दोनों का बोल सुनकर एकान्त में छिपकर उसकी बातें सुन ली । क्रोधातुर होकर प्रियमित्र ने यह सर्व वृत्तान्त मदनप्रिय के कुटुम्बियों से कहा। कुलीन होने के कारण उन लोगों को बड़ा शर्मिन्दा होना पड़ा । उन्होंने मदन को बुलाकर उसका बड़ा तिरस्कार किया और कह दिया कि यदि तूं कुलीन है और कुछ शरम रखता है तो हमें मुँह न दिखाना ।
महात्मा चंद्रयशा केवली के मुखारविन्द से पूर्वोक्त बातें सुनकर सभा में बैठे कई एक वृद्ध मनुष्य बोल उठे "गुरुदेव ! आप बिल्कुल सत्य फरमाते हैं। हम स्वयं पृथवीस्थानपुर के ही रहनेवाले हैं । हम खुद इस बात को जानते हैं। यह घटना हमारे स्मरण में है । मदनप्रिय आजतक अपने घर नहीं आया प्रियमित्र का घर अभी तक उसके नाम से पहचाना जाता है । उस घर में आज भी उसके निकट सम्बन्धी रहते हैं । अहो ! ज्ञान की कैसी महिमा है ! ज्ञानी पुरुष ज्ञानबल से पूर्व में बीती हुई सर्व घटना को जान सकता है ।
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राजा सूरपाल - शहर को छोड़े बाद मदन प्रिय की क्या दशा हुई भगवन्! महात्माचंद्रयशा - मदनप्रिय घर से निकलकर अपने कृत्य के लिए पश्चात्ताप करता हुआ। देशान्तर को चल दिया । चलते चलते उसे दो दिन निराहर ही बीत गये, तीसरे दिन जब वह एक अटवी में जा रहा था तब वहाँ पर उसे बहुत - सी गायें चरती दिखाई दीं । क्षुधातुर मदन ने चरवाहे से दूध की प्रार्थना की । तीन दिन से भूखे मदन को देखकर चरवाहे को दया आ - गयी ।
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