Book Title: Mahabal Malayasundari Charitra
Author(s): Tilakvijay, Jayanandsuri
Publisher: Ek Sadgruhastha

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Page 214
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र स्वजन - मिलाप बलसार सार्थवाह को छोड़ देना चाहिए । अगर आपको यह बात मंजूर न हो तो हमारे राजाओं का अन्तिम संदेश है कि आप युद्ध के लिए तैयार हो जायें । वे आपसे बलपूर्वक बलसार को छुडायेंगे और आप को भी शिक्षा करेंगे। सिद्धराज ने उस दूत के वचन शांतिपूर्वक सुने । वह अपने पिता और स्वसुर को सन्मुख आया जानकर बहुत ही खुश हुआ । परन्तु कुछ सोच - विचारकर वह बनावटी क्रोध धारणकर दूत से बोला - तुम्हारे दोनों स्वामी बहुत बड़ी सेना लेकर आये हैं तो हम क्या चूड़ियाँ पहनकर बैठे हैं ? या हमारी भुजायें नहीं हैं ? या हम मिट्टी के ही पुतले हैं ? तुम्हारे स्वामी क्या यह नहीं जानते कि अकेला सूर्य ही असंख्य ताराओं के तेज को नष्ट कर डालता है ? एक ही केशरी अनेक मदोन्मत्त हाथियों के मद को ठंडा कर देता है, क्या वे इस बात को भूल गये हैं ? बलसार बडा व्यापारी होने से तुम्हारे राजाओं का मित्र है इससे हमें क्या ? बडा हो या छोटा, अपराधी मनुष्य शिक्षा का पात्र बनता है । सज्जनों का सम्मान करना और दुर्जनों - अपराधियों को दंड देना यह न्यायवान राजाओं का कर्तव्य है। बलसार गुन्हेगार है, अतः उसे शिक्षा करना न्याय है अन्याय नहीं । तुम्हारे स्वामी अपराधी का पक्ष लेकर आये हैं, इसलिए मैं उनसे बिलकुल नहीं डरता । तुम्हें याद रखना चाहिए कि उल्लू को आश्रय देनेवाले अन्धकार की सूर्य के सामने जो दशा होती है, वही दशा अन्यायी को आश्रय देनेवाले की भी होगी । इतने नीति निपुण होने पर भी अपराधी का पक्ष लेकर मुझ पर इतनी बड़ी सेना ले चढ़ायी करते हुए तुम्हारे स्वामियों को लज्जा न आयी? अन्याय पक्ष की पुष्टि करनेवाले चाहे जैसे बलवान हों समरभूमि में मेरे सामने टिक नहीं सकते। जाओ दूत ! तुम्हारे स्वामियों को भी मेरा यह अन्तिम संदेश सुना दो कि वे युद्ध की तैयारी करें। उनकी तमाम इच्छायें युद्ध भूमि में मेरी तलवार पूर्ण करेगी। सिद्धराज के वचन सुन दूत भी स्तब्ध - सा हो गया । वह सिद्धराज को नमस्कार कर वहाँ से चला गया। उसने राजा शूरपाल और वीरधवल से जाकर सिद्धराज का सारा समाचार कह सुनाया और उन्हें युद्ध के लिए तैयार होने की 197

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