Book Title: Mahabal Malayasundari Charitra
Author(s): Tilakvijay, Jayanandsuri
Publisher: Ek Sadgruhastha

View full book text
Previous | Next

Page 223
________________ पूर्वभव वृत्तान्त श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र पूर्वभव वृत्तान्त सागर तिलक नगर के बाह्योद्यान में आज बहुत से नगर निवासियों का जमघट लगा हुआ है । शहर के बड़े - बड़े आदमी उत्साह और भक्ति - भाव से प्रेरित हो उधर को जा रहे हैं । इस समय राजसभा में आकर एक बागवान ने राजा से प्रार्थना की - महाराज ! आज शहर के बाहर महातपस्वी और कैवल्य ज्ञानधारी एक चंद्रयशा नामक महात्मा पधारे हैं । यह समाचार सुनते ही सारा राजकुटुम्ब इस प्रकार प्रसन्न हो उठा जिस तरह सूर्य के आगमन से कमल समुदाय विकसित हो उठता है । उन्होंने जरा भी विलम्ब न किया, सारे ही राज कुटुम्ब को साथ लेकर गुरुमहाराज को वन्दन करने के लिए उनके दर्शनार्थ महाराज शूरपाल, महाराज वीरधवल वहाँ आ पहुँचे । राजा आदि तमाम जनता के उपस्थित होने पर कृपा के समुद्र ज्ञानभानु - महात्मा चंद्रयशा केवली भगवान ने जगतजनों पर करुणा लाकर संसार के जन्म - जरा - मरण के बन्धनों को छेदन करनेवाली और आत्मा का वास्तविक स्वरूप बतलाने वाली वैराग्य गर्भितधर्म देशना प्रारंभ की । सुखप्राप्ति की इच्छा रखनेवाले सज्जनों ! आपको यह बात स्मरण रखनी चाहिए कि संसार के तमाम सुख निमित्तजन्य होने के कारण विनश्वर हैं। आत्मा का असली स्वरूप प्राप्त किये बिना मनुष्य को सच्चा सुख प्राप्त नहीं होता । उस सुख को प्राप्त करने के लिए ज्ञानवान पुरुषों ने दो मार्ग बतलाये हैं। एक सन्यस्त मार्ग और दूसरा गृहस्थ है । जिस मनुष्य में उस सुख को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा और उत्सुकता प्राप्त हुई हो वह मनुष्य आत्मा के साथ कर्मबन्धन करानेवाले तमाम भावों का सर्वथा परित्यागकर प्रबल पुरुषार्थ द्वारा संन्यस्त मार्ग से उसे प्राप्त कर सकता है । जिसमें उतना त्याग करने का प्रबल पुरुषार्थ न हो वह मनुष्य गृहस्थ धर्म में रहकर उसके योग्य नियमों को धारणकर धीरे धीरे आत्मस्वरूप की ओर गमन करते हुए उस सुख के नजदीक पहुँच जाता 206

Loading...

Page Navigation
1 ... 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264