Book Title: Mahabal Malayasundari Charitra
Author(s): Tilakvijay, Jayanandsuri
Publisher: Ek Sadgruhastha

View full book text
Previous | Next

Page 217
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र स्वजन - मिलाप में ही आते हुए शत्रु सेना के बाणों को ग्रहणकर लेता था और उन्हीं बाणों को लाकर महाबल को दे देता था । बहुत देर तक इसी प्रकार युद्ध चलता रहने से अब सामने वाली सेना का संगठन टूट गया । बड़े - बड़े योद्धाओं का होशला परास्त हो गया । इतनी विपुल सेना छिन्न – भिन्न होती देख दोनों राजाओं के होश गुम होने लगे । जिस तरह तेजस्वी गुरु और शुक्र को चंद्रमा निस्तेज कर डालता है उसी तरह अकेले महाबल ने अपनी दिव्य सहायवाली बाणवृष्टि से दोनों राजाओं को निस्तेज कर दिया । महाबल के शस्त्राघात से उनके हाथ से छूटकर शस्त्र जमीन पर गिरने लगे । अब वे लज्जा से अधोमुख हो चिन्तातुर होकर सोचने लगे - अहो ! कैसा आश्चर्य है ? मुट्ठीभर सैनिकों को साथ लेकर सिद्धराज अकेला ही कैसा पराक्रम बतला रहा है ? धन्य है ऐसे वीर योद्धा को। हे प्रभो! आज इस दुर्दमनीय महायोद्धा सिद्धराज के सामने किस तरह हमारी लज्जा रहेगी ? अपने पिता और स्वसुर को युद्धक्षेत्र में पराजित होने के कारण चिन्तित देखकर महाबल ने व्यन्तर देवको कुछ सूचनाकर प्रथम से लिखा हुआ पत्र बाण के अग्रभाग में रखकर वह बाण अपने पिता राजा शूरपाल के सामने फेंका । दिव्य प्रभाववाला सिद्धराज का छोड़ा हुआ बाण राजा शूरपाल को नमस्कार कर तमाम मनुष्यों को आश्चर्य चकित करता हुआ राजा के सामने आ पड़ा । दोनों राजा आश्चर्य पाते हुए उस बाण के पास आये और उसके अग्रभाग पर चिपकाये हुए पत्र को महाराज शूरपाल ने उठा लिया । पत्र को देख तमाम सैनिकों को बड़ा आश्चर्य हुआ । मंत्री वगैरह सेना के तमाम प्रधान पुरुष उस पत्र को सुनने के लिए उत्सुकता पूर्वक महाराज शूरपाल के पास आ खड़े हुए । महाराज शूरपाल ने भी उस पत्र को खोलकर सबके समक्ष उच्च स्वर में पढ़ना शुरु किया । श्रीमान, वीर शिरोमणी, रणांगण भूमि में स्थित पूज्य पिताश्री महाराज शूरपाल नरेन्द्र के चरणारविंदों में तथा श्रीमान् चंद्रावती नरेश, महाराज वीरधवल के चरणकमलों में, आप श्री के सन्मुख समरभूमि में स्थित महाबल कुमार आप सबको नमस्कारपूर्वक प्रार्थना करता है कि आपकी पवित्र कृपा से मुझे 200

Loading...

Page Navigation
1 ... 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264