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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
स्वजन
मिलाप
सूचना दी। महाराज शूरपाल और वीरधवल की आज्ञा से उनकी सेना में समर की तैयारीयाँ होने लगीं ।
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इधर महाबल राजा सभा में से उठकर राजमहल में गया । उसने बलसार को छुड़ाने के लिए अपने पिता और स्वसुरजी के आने का शुभ समाचार रानी मलयासुन्दरी को सुनाया । अपने पिता और स्वसुर के आने का समाचार सुनकर मलयासुन्दरी को अत्यन्त आनंद हुआ। महाबल बोला – प्रिये ! ऐसी परिस्थिति में संग्राम किये बिना पिताजी और ससुरजी से यों ही जा मिलना मुझे उचित मालूम नहीं होता । मैं यह समझता हूँ कि पूज्य पिता और पितातुल्य स्वसुरजी के सन्मुख युद्ध करना योग्य नहीं है, तथापि संग्राम करने की भावना से आये हुए होने के कारण उनके समक्ष जाकर "मैं आपका पुत्र हूँ । या मैं आपका जमाई हूँ" यों कहकर दीनता से मिलना क्षत्रिय पुरुषों के लिए अपमान कारक है । इसलिए संग्राम में कुछ हाथ बतलाकर फिर पिताजी और स्वसुरजी से मिलना अधिक प्रेम और आनन्द दायक होगा । तुम यहाँ रहकर निश्चिन्त हो महल पर से युद्ध देखना। मलयासुन्दरी को यों कहकर महाबल राज महल से बाहर चला गया।
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दोनों सेनाओं में संग्राम की तैयारी हो रही है । अपने मालिक की आज्ञा पाकर वीरता में मत्त हो योद्धाओं में उत्साह भर रहा है । सिद्धराज स्वयं सेनापति बनकर सैन्य संचालन करेंगे यह जानकर वीर सुभटों के उत्साह का पार न रहा। आज उन्हें यह प्रथम ही अवसर मिलेगा जबकि वे अपने नवीन राजा सिद्धराज को स्वयं शत्रुसेना से लड़ता देखेंगे ।
उधर विपुल शत्रु सेना देख कायर मनुष्यों का हृदय काँपता था । इधर मुट्टीभर सुभटों को देख सारा शहर चिन्ता सागर में डूब रहा था । दोनों महा शक्तिशाली राजाओं की असंख्य सेना के सामने सिद्धराज की सेना कुछ भी हिसाब में न थी । परन्तु फिर भी सिद्धराज का साहस देख लोगों को उसके पूर्वकृत कारनामों से विश्वास होता था कि वह जिस कार्य में सोच समझकर हाथ डालता है, उसे बिना पूर्ण किये नहीं छोड़ता । इस समय जो उसने अतुल सेना
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