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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
स्वजन - मिलाप मात्र में जीत लिया; परन्तु तलाश करने पर भी यहाँ पर मलयासुन्दरी का पता नलगा । निराश होकर दोनों राजा अपने नगर को वापिस लौट रहे थे, इसी समय रास्ते में उन्हें सोमचंद्र जा मिला । उसने बलसार का कहा हुआ सविस्तर संदेश राजा वीरधवल के समक्ष कह सुनाया । और साथ में लायी हुई आठ लाख सुवर्णमुद्रायें भेंट के बतौर राजा के सामने रख दीं। राजा वीरधवल ने आठ लाख मुहरों से आधा धन महाराज शूरपाल को दे सिद्धराज को पराजितकर बलसार को छुड़ाने की सम्मति दी । महाराज शूरपाल ने भी लोभ के वश हो राजा वीरधवल के विचारों से सहानुभूति प्रकट की । महाराज शूरपाल बोला – सागर तिलक नरेश के साथ तो हमारा वंश परंपरा से वैरभाव चला आ रहा है । चलो यह अवसर ठीक है । उसे पराजित कर उसका सर्वस्व ग्रहण करेंगे।
सिद्धराज कौन है ? और उसने किसलिए इतने बड़े व्यापारी बलसार को कैद किया है ? इस बात से वे दोनों ही राजा अनजान थे । इसी तरह यह मुझे कैद करने वाला सिद्धराज कौन है, और मलयासुन्दरी का वीरधवल के साथ क्या सम्बन्ध है । इस विषय में बलसार भी बिलकुल अनजान था । अज्ञानता के कारण दोनों राजा विपुल सैन्य ले सिद्धराज पर चढ़ आये । सागरतिलक शहर के नजीक आकर उन्होंने अपनी अनुकूलता देख एक छोटी - सी पहाड़ी पर पड़ाव डाला । सिद्धराज को चेताने के लिए शिक्षा देकर उन्होंने उसके पास एक राजदूत भेजा।
सिद्धराज की राजसभा में आकर नमस्कार कर दूत बोला – राजन् ! पृथ्वीस्थानपुर से महाराज शूरपाल तथा चंद्रावती से महाराज वीरधवल अपना सैन्य लेकर यहाँ आये हुए हैं । वे आपको मालूम कराते हैं कि आपने जिस बलसार व्यापारी को कैद किया है वह हमारा मित्र है। हम उसकी कदापि उपेक्षा नहीं कर सकते । इसलिए यदि आप अपना भला चाहते हैं तो उसका सत्कार कर उसे छोड़ दें। अगर उसने आपका कुछ अपराध भी किया हो तथापि आप उसका एक अपराध सहन कर लें । राजन् ! आप स्वयं यद्यपि शूरवीर हैं तथापि आपके पास सेनाबल बहुत कम है । हमारे राजाओं के पास असंख्य सेना बल है, अतः आपको इन तमाम बातों पर विचारकर हमारे स्वामी की आज्ञानुसार
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