Book Title: Mahabal Malayasundari Charitra
Author(s): Tilakvijay, Jayanandsuri
Publisher: Ek Sadgruhastha

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Page 211
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र स्वजन - - मिलाप इधर बलसार्थवाह देशान्तरों से व्यापार द्वारा बहुत - सा द्रव्य कमाकर, बड़ी ऋद्धि-सिद्धि के साथ इतने दिनों के बाद सागर तिलक बंदर पर आ पहुँचा। क्योंकि वह वहाँ का ही रहनेवाला था । देशावर से लाये हुए माल के भरे जहाजों को बंदरगाह पर ठहराकर पुराने रीतिरिवाज के अनुसार वह बहुत सी उत्तम वस्तुओं की भेट लेकर राजसभा में सिद्धराज से मिलने आया । राजसभा में सिद्धराज के सन्मुख भेट रख, और नमस्कारकर वह हाथ जोड़कर खड़ा रहा । इस समय महारानी मलयासुन्दरी भी राजा महाबल के पास ही सभा में बैठी थी । उसे देखते ही भय से सार्थवाह का हृदय काँप गया । क्योंकि उसने मलयासुन्दरी की कदर्थना करने में कुछ भी बाकी न रखा था । भय से व्याकुल हुआ बलसार सार्थवाह किसी कार्य के बहाने से शीघ्र ही राजसभा से बाहर निकल अपने घर पहुँचा । वह घर आकर सोचने लगा - इस औरत को मैंने बर्बर द्वीप में ले जाकर बेच दिया था । यह किस तरह वहाँ से आयी होगी? और किस तरह इसने यहाँ आकर राजा से संबंध जोड़ा होगा ? मैंने जो इसकी कदर्थनायें की हैं यदि यह उन सब बातों को राजा से कह देगी तो अवश्य ही राजा मुझे प्राण दण्ड की शिक्षा देगा । स्वजन - मिलाप 194 इधर मलयासुन्दरी पुत्र वियोग से अत्यन्त दुःख पा रही थी । इसलिए ऐसे सुख में भी वह अपने पुत्र का हरण करनेवाले बलसार व्यापारी को क्यों कर भूल सकती थी ? बलसार के बाहर चले जाने पर उसने तुरन्त ही महाबल से कहा - स्वामिन् ! यही वह बलसार सार्थवाह है जिसने मुझे अत्यन्त कष्ट दिये और मेरे पुत्र को छीन लिया है । मलयासुन्दरी के वचन सुनते ही राजा के शरीर में क्रोधाग्नि व्याप्त हो गयी । वह बोला - इसी दुष्ट सार्थवाह ने निर्दोष और निष्कारण मेरी स्त्री की कदर्थना की है ? अरे सुभटों ! क्या देखते हो ? जल्दी जाओ । इस दुष्टात्मा बलसार को कुटुम्ब सहित बांधलाओ और इसका तमाम

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