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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
स्वजन मिलाप
माल जप्त करलो । राजा की आज्ञा होते ही सहकुटुम्ब बलसार को गिरफ़्तार कर लिया गया । और उसका तमाम माल भी जप्त किया गया। राजा सिद्धराज सार्थवाह को लड़का ला देने को कहा, परन्तु उसने कुछ भी उत्तर न दिया । राजा ने उसका अपराध मालूमकर उसे सहकुटुम्ब कैद कर लिया ।
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कैद में पड़ा हुआ सार्थवाह विचार करता है - मेरे ही किये कर्म मुझे उदय आये हैं । इस राजा के पंजे से निकलना बिलकुल असंभवित मालूम होता है, तथापि एक उपाय है । यदि वह उपाय सफल हो गया तो मेरी जान माल की कुशलता का संभव है और वह उपाय यह कि इस राजा का कट्टर दुश्मन चंद्रावती नरेश वीरधवल है । उसके साथ मेरा विशेष परिचय भी है । वह राजा इस सिद्धराज का पराजयकर मुझे छुड़ा सकता है । इस राजा ने मेरी मिलकत जप्त कर ली है, तथापि अभी तक इसे मेरी गुप्त मिलकत का पता नहीं है । इसलिए उसमें से आठ लाख सुवर्ण मोहरें और द्वीपान्तर से लाये हुए लक्षणवाले आठ हाथी अपना छुटकारा पाने की एवज में चंद्रावती नरेश वीरधवल को भेजूँ तो ठीक हो । इस प्रकार संकल्प विकल्पकर कैद में रहते हुए भी अपने विश्वासपात्र सोमचंद्र नामक एक वणिक को गुप्त संकेत से उसने यह बात मालूम की। गुप्त खजाने में से आठ लाख सुवर्ण मोहरें ले वीरधवल राजा को अपनी सहायतार्थ बुलाने के लिए सोमचंद्र को चंद्रावती जाने की आज्ञा दी ।
सोमचंद्र बलसार की आज्ञानुसार आठ लाख सुवर्ण मुहरें ले वीरधवल राजा को बुलाने के लिए चल पड़ा। जब वह रास्ते में रौद्र अटवी में पहुँचा तब उसे चंद्रावती नरेश वीरधवल और पृथ्वी स्थानपुर के राजा सूरपाल अतुल सैन्य सहित वहाँ ही सन्मुख मिल गये ।
इन दोनों राजाओं को यह खबर मिली थी कि रौद्र अटवी में दुर्गतिलक नामक पहाड़ पर भी नामक एक पल्लीपति रहता है, उसके पास मलयासुन्दरी है । यह खबर मिलते ही पुत्र - पुत्री के वियोगी दोनों राजाओंने अपने - अपने राज्य से प्रबल सैन्य ले भीम पल्लीपति को जीतकर मलयासुन्दरी को छुड़वाने के लिए चढाई की थी । दुर्जय पल्लीपति को तो उन्होंने प्रबल सैन्यबल से लीला
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