Book Title: Mahabal Malayasundari Charitra
Author(s): Tilakvijay, Jayanandsuri
Publisher: Ek Sadgruhastha

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Page 220
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र स्वजन मिलाप महाबल - बलसार को यहाँ बुलाकर पूछने से मालूम होगा । बलसार का शीघ्र ही जेल खाने में से राजा शूरपाल के पास बुलवाया गया । वह राज पुरुषों के पहरे में और हथकड़ी बेड़ियों से जकड़ा हुआ राज सभा में हाजिर हो उसे देखते ही राजा शूरपाल त्यौरी चढ़ाकर बोला- अरे दुष्ट ! तूंने हमारा भयंकर अपराध किया है । इस अपराध में तुझे भारी से भारी शिक्षा मिलनी चाहिए | तूं प्रथम वह तो बतला कि तूंने उस हमारे लड़के की क्या व्यवस्था की है और उसे कहाँ रक्खा है ? - शूरपाल और वीरधवल राजा को वहाँ बैठा देख बलसार के छक्के छूट गये । वह और भी अधिक घबड़ा गया । वह जिनकी सहाय से सिद्धराज के जेलखाने से छूटना चाहता था उन्हीं के ये पुत्र - पुत्री हैं जिनका उसने अपराध किया है । जिस वीरधवल राजा की सहायता से वह अपने छुटकारे की कुछ आशा रखता था, उसकी पुत्री मलयासुन्दरी की उसने घोर विटम्बना की है, इतना ही नहीं किन्तु उसे द्रव्य लेकर कारु लोगों के हाथ पशु के समान बेच दिया था । इत्यादि बातें याद आते ही उसके होश गुम हो गये । वह सोचने लगा कि मेरे सब मनोरथ गुम हो गये । वह सोचने लगा कि मेरे सब मनोरथ निष्फल हो गये । राजद्रोह और स्वामी का अपराध करनेवाले मुझको सहकुटुम्ब प्राण दण्ड की शिक्षा के सिवा अब अन्य मार्ग ही नहीं दीखता । अर्थात् मरने से बचने का अब कोई उपाय नहीं है । इस प्रकार सोच - विचारकर बलसार बोलामहाराज! मैंने आपका बड़ा भयंकर अपराध किया है, इससे मैं अवश्य ही शिक्षा का पात्र हूँ तथापि यदि आप मुझे कुटुम्ब सहित को प्राण दान देवें तब ही मैं आपके उस पुत्र को बतला सकता हूँ । अन्यथा मुझे यों भी मरना है और यों भी । | | शूरपाल राजा - खैर यदि तूं हमारे जीवित पुत्र को ला दे तो हम तुझे तेरी इच्छानुसार जीवित दान देते हैं। यों कहकर राजा ने बलसार के बतलाये हुए गुप्त स्थान पर राज पुरुषों को भेजा और वे वहाँ हिफाजत से रहे हुए उस बालक को राज सभा में ले आये । जिस तरह वर्षाऋतु में मेघागमन से आनन्दित हो मयूर I 203

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