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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
दुःखों का अन्त अन्याय होने के कारण उसके शोक में अन्य मनुष्यों की तरफ से सहानुभूति तक भी न मिली । राजा ने उसी वक्त जीवा मंत्री के पुत्र को मंत्री का स्थान दे दिया।
कंदर्प - "सिद्धराज ! तुम इस करंडिये में ऐसी क्या भयानक चीज़ लाये थे, जिसने देखते ही देखते जरासी देर में अचानक हमारे मंत्री को भस्मीभूत कर डाला।
सिद्ध - "राजन् ! यह तो आपके अन्याय वृक्ष का एक अंकूरा ही पैदा हुआ है, इसके बाद अब उसमें पुष्प और फलों का लगना बाकी है और उन फलों का स्वादानुभव आपको ही करना होगा । जो राजा न्यायपूर्वक प्रजापालन करते हैं वे कदापि दुःखित नहीं होते, परन्तु दुनिया में कीर्ति और अनेक प्रकार की संपत्ति को प्राप्त करते हैं । राजन् ! अब भी मेरी स्त्री सहित मुझे विदाकर आप सुख से राज्यपालन कर सकते हैं । अन्यथा इसका परिणाम आपके लिये भयंकर होगा। यह सुनकर सामन्तादि राजमान्य पुरुषोंने राजा को आग्रह पूर्वक समझाया महाराज इस सत्पुरुष सिद्धराज का वचन मानो और इसकी स्त्री देकर इसे यहाँ से बिदा करो, ऐसे समर्थ पुरुष को अन्याय के द्वारा प्रकोपित करना राज्य के लिए हितकर नहीं है।
___मलयासुन्दरी पर अत्यन्त आसक्ति रखने वाला कंदर्प सोचने लगा - यह सिद्धराज सचमुच ही सामर्थ्यवान् पुरुष है एवं मंत्रादि भी जानता है इसी कारण मैं जो कार्य बतलाता हूँ वह लीलामात्र से कर लाता है । अब कौन - सा ऐसा दुष्कर कार्य बतलाऊँ जिसके करने से यह मृत्यु को प्राप्त करे और मैं सदा के लिए मलयासुन्दरी को प्राप्त करूँ। ___ जिस वक्त राजा पूर्वोक्त विचार कर रहा था उस वक्त अकस्मात् राजा की अश्वशाला में आग लग गई । देखते ही देखते वह आग इतना जोर पकड़ गयी कि अश्वशाला को जला उसकी भयंकर ज्वालायें आकाश को स्पर्श करने लगी । यह देख राजा बोला - परोपकारी सिद्धराज ! बस अब मेरा यही एक कार्य कर दो । इस जलती हुई अश्वशाला में मेरा अश्वरत्न जल रहा है उसे बाहर निकाल आओ। फिर मैं तुम्हारी स्त्री को तुम्हें सौंपकर विदा कर दूंगा।
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