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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
दुःख में वियोगी मिलन
दुःख में वियोगी मिलन
दिन ढल चुका था । आज कुछ विशेष कार्य न होने से राजा कंदर्प ने अपने सभासदों से कहा, चलो भाई! आज बंदरगाह की तरफ घूमने चलें। जी हजूर'. कहकर सभासदों ने उसकी आज्ञा को स्वीकार किया । घोड़े तैयार होकर आ गये। राजा कंदर्प अपने साथियों के साथ बंदरगाह की तरफ चल पड़ा । बंदरगाह की ओर से घूमते हुए जब वे समुद्र के किनारे पूर्व की तरफ जा रहे थे तब उनमें से एक सवार बोल उठा - अहो! कैसा आश्चर्य है? समुद्र मार्ग से कोई मनुष्य मगरमच्छ जानवर पर बैठा हुआ समुद्रतट की ओर आ रहा है । यह सुन तमाम मनुष्यों का ध्यान उसी तरफ खिंच गया । कुछ नजदीक आने से मालूम हुआ कि कोई एक मनुष्य मगर - मच्छ पर सवार हो पूर्णवेग से उन्हीं मनुष्यों की तरफ देखता हुआ चला आ रहा है । कंदर्प राजा सहित तमाम मनुष्य आश्चर्य के साथ मौन धारणकर, उसी तरफ देखते हुए खड़े रहे । जिस तरफ वे मनुष्य खड़े थे; उससे दूसरी तरफ समुद्रतट के पास आकर वह मच्छ खड़ा रहा । उसने अपनी पीठ पर बैठे हुए उस मनुष्य को मृदुशुण्डाकार मुख से धीरे - धीरे भूमि पर उतार दिया । और उसे बार - बार देखता हुआ वह मच्छ वापिस समुद्र में चला गया।
पाठक महाशय! आप स्वयं समझ गये होंगे कि मगरमच्छ पर बैठकर जल मार्ग से समुद्रतट पर आने वाली व्यक्ति मलयासुंदरी के सिवा और कोई नहीं है। जिस समय पंचपरमेष्ठि नवकारमंत्र को उच्चारण करते हुए वह भारंड पक्षी के पंजों से निकल समुद्र में गिरी थी । उस वक्त उसके पुण्योदय से पानी में पड़ने की जगह एक मगर मच्छ तैर रहा था । मलयासुंदरी उसकी पीठ पर पड़ी थीं। अब उसने अपने जीवन की आशा सर्वथा छोड़ दी थी, इसलिए अंतिम समय सावधानता पूर्वक वह परमात्मा का नाम स्मरण कर रही थी । उसका शब्द सुनकर आश्चर्य चकित हो मगर - मच्छ ने गर्दन झुकाकर अपनी पीठ की तरफ देखा । मलयासुंदरी को अपनी पीठ पर बैठी देख वह एकदम स्तब्ध सा हो गया।
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