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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
दुःखों का अन्त प्रातःकाल होने पर जब शहर में वहाँ के लोग महाबल के धैर्य और राजा के अन्याय की परस्पर बातें कर रहे थे तब लोगों ने अकस्मात् सिर पर छोटी सी गठरी रखे हुए श्मशानभूमि की तरफ से आते हुए सिद्धराज को देखा । उसे जीवित आते देख जनता के हृदय में आश्चर्य और आनन्द का पार न रहा । आश्चर्य चकित हो वे बोल उठे धैर्यवान सत्पुरुष ! आप किस तरह वापिस आये ? और यह सिर पर गठड़ी में क्या लाये हो । राजा के लिए उस चिता की राख लेकर आया है। इतना ही कहकर महाबलराजमहल की तरफ चला गया। राजसभा में राजा के समक्ष राख की गठरी रखकर सिद्धपुरुष बोला - "राजन् ! आपकी दुर्लभ में दुर्लभ औषधी यह उस चिता की राख है । अब आप अपनी इच्छा के अनुसार जितनी चाहिए उतनी राख अपने मस्तक में डालें जिससे आपके मस्तक की व्याधि शान्त हो । साश्चर्य राजा बोला - सिद्धराज ! तू चिताग्नि में दग्ध न हुआ ? सिद्धराज ने समयानुसार विचारकर उत्तर दिया - महाराज ! मैं चिता में जलकर भस्मीभूत हो गया था परन्तु मेरे सत्व के प्रभाव से वहाँ पर देव आ पहुँचे और उन्होंने चिता को अमृत से सिंचन किया। इससे मैं फिर सजीवित हो आया हूँ। इसलिए महाराज ! आप इस रक्षा को ग्रहण करें, और अपने बोले हुए वचनों का पालनकर मेरी स्त्री मेरे सूपूर्द करें । यह सुन राजा विचारने लगा - सचमुच ही यह कोई महाधूर्त है । सुभटों की नजर बचाकर मालूम होता है यह चिता से बाहर निकल गया है । सिद्धराज के गुणानुरागी या कंदर्प की अनीति से राजद्रोही बने मनुष्यों ने मलयासुन्दरी को राख लेकर सिद्धपुरुष के जीवित आने की खबर दी । यह खबर पाते ही मलयासुन्दरी इस तरह विकसीत हो गयी । जिस तरह रातभर की मुरझाई हुई कमलिनी प्रातःकाल सूर्य के समागम से विकसीत हो जाती है । सिद्धराज राजसभा में राख की गठरी रख मिलने के लिए उत्कंठित हुई मलयासुन्दरी के पास पहुँचा । उसे देख मलयासुन्दरी हर्ष से गद्गद् हो उठी ! वह बोली - प्राणनाथ ! चिता में प्रवेश करने पर भी आप किस तरह वापिस आ गये। महाबल प्रिये ! मैं उस अन्धकूप में से जिस सुरंग के रास्ते से बाहर निकला था उसी सुरंग के मुखद्वार पर मैंने चारों तरफ बड़ी चिता लगवायी थी और बीच में अपने बैठने के लिए जगह खाली
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