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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
दुःखों का अन्त और इस जिन्दगी में मैंने यदि कुछ न्यायपूर्वक शुभ कर्म उपार्जन किया हो तो उसके प्रभाव से मेरा यह साहस सफल हो, यों कहकर जनता के हाहारव करते हुए पर्वत शिखर से झंपापात कर दिया । वह देखते ही देखते मनुष्यों की नजर से अदृश्य हो गया । राजपुरुषों ने यह समाचार राजा को आ सुनाया । राजा और मंत्री ने निश्चय कर लिया था कि बस अबके वह अवश्य ही खतम हो जायगा।
प्रातःकाल होते ही पके हुए आम्रफलों का करंडिया सिर पर रक्खे हुए प्रसन्नता धारण किये महाबल कुमार को जब नागरिक लोगों ने आते हुए देखा तब उनके हर्ष और विस्मय का पार न रहा । वे एकदम आश्चर्य में पड़कर विचारने लगे । अहो ! कैसी विचित्रता है ! यह कोई दिव्य पुरुष है या कोई विद्याधर ? ऐसे - ऐसे मरणान्त संकटों में भी जाकर यह राजा का कार्य सिद्ध कर लाता है। सचमुच ही इसका सिद्धराज नाम सार्थक ही है । मालूम होता है इसके कोई देवता वश में है । इसी कारण यह उसकी सहाय से असाध्य कार्यों को भी सिद्ध कर लाता है । इत्यादि विचार करते हुए वे हर्षित हो दौड़ते हुए उसके पास आये और बोले - सत्पुरुष सिद्धराज ! आप किस तरह वापिस आये ? आपके शरीर को कुछ इजा तो न पहुँची ? सिद्धराज बोला – महानुभावो! आप मुझ से इस समय कोई सवाल न कीजिए । कुछ देर पश्चात् आपको सब कुछ मालूम हो जायगा। इस तरह उत्तर देते हुए वह अनेक मनुष्यों के साथ राजसभा में आया। बहुत से मनुष्यों के साथ महाबल को राजसभा में आया देख राजा का चेहरा श्याम पड़ गया । वह उसके सामर्थ्य को देखकर कुछ भयभीत - सा हो गया, इसलिए उसने महाबल का कुछ भी आदर सत्कार न किया । परन्तु राजा को मौन देख जीवा मंत्री बोला - सिद्ध पुरुष ! ऐसा दुष्कर कार्यकर आप बहुत ही जल्दी आ गये । ! कहिए, आपके शरीर में तो कुशलता है न ?
जी हाँ मेरा शरीर कुशल है, कहते हुए महाबल ने अपने सिरसे आम के फलों का करंडिया उतारा । और जहाँ राजा व मंत्री बैठे थे वहाँ ही उनके पास वह करंडिया रख दिया । महाबल बोला- राजन् ! इन पके हुए आम्रफलों को खाकर आप अपने पित्त रोगों को शान्त करो। उसके गंभीर शब्द सुन और ऐसा
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