Book Title: Mahabal Malayasundari Charitra
Author(s): Tilakvijay, Jayanandsuri
Publisher: Ek Sadgruhastha

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Page 198
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःखों का अन्त जाय, तो उसे चिता में जीवित को जलाकर और उस चिता की राख मस्तक पर लगायी जाय तो यह दर्द मिट सकता है। ये शब्द सुनकर महाबल विचार में पड़ गया । सचमुच यह राजा मलयासुन्दरी पर आसक्त है और मुझे मारना चाहता है । इसीलिए इस दुष्ट आशय से इसने मुझसे पहले एक कार्य कराने का वचन ले लिया है । इसने मुझे खूब फसाया । अगर मंजूर किया हुआ मैं इसका यह कार्य न करूँ तो यह मलयासुन्दरी को कदापि मुझे नहीं देगा और इधर यह कार्य भी मृत्यु के मुख में गये बिना नहीं हो सकता । कुछ सोचकर धैर्य धारणकर वह बोला - राजन्! इस औषधि के सम्बन्ध में आपको कुछ भी चिंता न करनी चाहिए । यद्यपि यह औषधि प्राप्त करना बड़ा कठिन काम है तथापि मैं आपको यह दवा ला दूंगा। आप यह कार्य होने पर मेरी स्त्री को मुझे सौंप देना । दुष्ट परिणामवाला राजा कुछ हँस कर बोला - परोपकारी सिद्धराज ! यह आप क्या कहते हैं ? क्या मेरे वचन पर विश्वास नहीं ? यह कार्य करने पर मैं तुरंत ही आपकी स्त्री को आपके सुपूर्द कर दूंगा । महाबल बोला - राजन् ! उत्तम लक्षणवाला पुरुष जल मरने के लिए और कहाँ मिल सकता है ? मैं खुद ही चित्ता में प्रवेशकर अपने मृतक की राख आपको ला दूँगा । आप श्मशान भूमि में बहुत - सी लकड़ियें भिजवा दें । और चिता तैयार करावें । महाबल की ये बातें सुन कंदर्प को बड़ी खुशी हुई । और उसने अनेक गाड़ियाँ भरकर लकड़ियाँ श्मशान भूमि में भिजवा दी । यह बात नगर में पसरने से नागरिक लोगों में कोलाहल मच गया । वे आपस में बोलने लगे राजा का कितना अन्याय है ? बेचारे परदेशी परुषको जीवित जलाने का आग्रह कर रहा है। क्या कभी मनुष्य की राख लगाने से भी सिर के दर्द मिटे हैं ? __महाबल कुमार अन्तिम अवस्था का वेष धारणकर संध्या समय श्मशान भूमि में आया। अनेक राजसुभट उसके चारों तरफ खड़े थे । दया दुःख और आश्चर्य से हजारों मनुष्य एकत्रित हो इस दुर्घटना को देख रहे थे । मलयासुन्दरी को भी यह बात मालूम हो गयी अतः उसे बड़ा दुःख हुआ । वह अपने आपको 181

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