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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
दुःखों का अन्त उसका कारण पूछने पर मालूम हुआ कि तुम्हें साँपने डस लिया है । इसी कारण मैं राजपुरुषों के साथ राजा के पास आया और उसकी सम्मति से अपने साथ लाये हुए इस प्रभाविक मणि से मैंने तुम्हें इस समय जीवित किया है । प्रिये ! अब तुम जरा भी चिंता न रखना । मैंने राजा से खुशी पूर्वक तुम्हें अपने साथ ले जाने का वचन ले लिया है । इससे मुझे विश्वास है कि अब तुम्हें वह मेरे स्वाधीन कर देगा। यह बात सुन मलयासुन्दरी अत्यंत खुश हुई ।
___ महाबल ने अब राजा को अन्दर बुला लिया और कहा - "राजन् ! देखिये, मैंने इस सुन्दरी को बिल्कुल अच्छा कर दिया । मलयासुन्दरी को अपने पति के साथ अच्छी अवस्था में बैठी बात करती देख राजा प्रेमावेश से पराधीन हो मस्तक हिलाकर बोला - अहा हा ! जिसके जीवन की आशा न रही थी। उसे हमारे सुख के साथ तुमने जीवित दान दिया है । धन्य है तुम्हारे विद्या सामर्थ्य को । सत्पुरुष ! तुम्हारा नाम क्या है ? महाबल बोला – राजन् ! मेरा नाम सिद्धराज है। राजा बोला सिद्धराज ! कल से इस स्त्री ने भोजन नहीं किया अतः इसे जो रुचे सो तुम भोजन कराओ।
राजा की आज्ञा होते ही राजसेवकों ने तमाम सामग्री ला रक्खी । महाबल ने मलयासुन्दरी को भोजन कराया। सिद्धराज - राजन् ! अब आप मुझे आज्ञा दें। अपने वचन को पालन करें । मैं अपनी स्त्री को साथ लेकर अपने देश को जाऊँ । राजा ने इस बात का कुछ भी उत्तर न दिया। उसके मौन का आशय समझ नगर के प्रधान नागरिकों ने भी उसे खूब समझाया । महाराज ! अब यह इसकी स्त्री इसे दे देनी चाहिए । अपने वचन का पालनकर इन बेचारे दुःखित दंपती को सुखी करना चाहिए।
विषयान्ध राजा को नगर निवासियों की बातें बिल्कुल न सुहाती थी । वह हित शिक्षा की बातें सुन उल्टा मन ही मन उन पर क्रोधित होता था । कुछ देर सोचकर वह बोला - सिद्धराज! तुमने एककाम हमारा और भी करना मंजूर किया हुआ है । वह कार्य सिर्फ यही है "मेरे मस्तक में सदा दर्द हुआ करता है" शान्ति नहीं मिलती । वैद्यों का कथन है यदि कोई कभी उत्तम लक्षणवाला पुरुष मिल
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