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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःख में वियोगी मिलन मलयासुन्दरी के हाथ में जा दिया । मलयासुन्दरी ने आश्चर्य और हर्ष के साथ उस आम्रफल को ले लिया । वह इस अवस्था में आम्रफल मिलने पर अपने कुछ पुण्य का उदय समझ बड़ी खुश हुई । राजा की आज्ञा से अब उसे अन्तेउर में छोड़ा गया यह समाचार राजा को सुनाया गया कि आम्रफल देखकर वह सुन्दरी बहुत प्रसन्न है और उसे अन्तेउर में पहुँचा दिया गया है । मलयासुन्दरी को यह बात समझने में कुछ भी देर न लगी कि आज उसे उसका शीलभंग करने के लिए ही अन्तेउर में लाया गया है ।
युद्ध को जाते समय महाबल ने मलयासुन्दरी को जो रूप परिवर्तन की गुटिका दी थी वह उसके पुण्योदय से अभी तक पास ही थी । अतः समय देख अन्य कोई देख न सके इस तरह उसने एक गुटिका को आम्ररस में घिसकर अपने मस्तक पर तिलक कर लिया । बस फिर तो देरी ही क्या थी दिव्य गुटिकावाले तिलक के प्रभाव से क्षणभर में वह पुरुष रूप में हो गयी। अब उसकी खुशी का पार न था । वह निर्भय हो प्रसन्न चित्त से अन्तेउर में टहलने लगा । अन्तेउर में रहनेवाली अन्य राजरमणियों ने उसे देखकर बड़ा आश्चर्य प्राप्त किया । जिन्हें राजा के सिवाय अन्य किसी पुरुष का दर्शन न होता था आज वे अनन्य रूप राशि धारण करनेवाले युवक को देखकर विषयवासना से प्रेरित हो उस पर मोहित हो गयी और आपस में कहने लगी अहा ! आज अन्तेउर में महाराज के सिवाय यह सुंदर युवक कहाँ से आ गया ? यह तो कोई देव या विद्याधर मालूम होता है । इस तरह बोलते हुए उनके हृदय में विकार की तरंगे उसी तरह उछलने लगीं जैसे चंद्र बिम्ब को देख समुद्र की लहरें उमड़ती हैं। जिस भाँति किसी पके फल वाले वृक्ष को देखकर भूखे बन्दरों का समूह उसके फल खाने के लिए उत्सुक और लालायित होता है वैसे ही रणवास में रहनेवाली राज महलायें उस पुरुष के साथ कामक्रीड़ा करने के लिए उत्सुक हो उसके सन्मुख अनेक प्रकार के हावभाव और कटाक्ष करने लगीं ।
अंतेउर की यह चेष्टा देख आश्चर्य को प्राप्त हुई एक दासी ने राजा के पास जाकर प्रार्थना की, महाराज ! आज अकस्मात् आपके अन्तेउर में एक कोई सुन्दर
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