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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
दुःख में वियोगी मिलन
उसके दुःख का वृत्तान्त सुनकर महाबल का हृदय दुःख से भर आया, फिर से उसके नेत्रों से आँसु बहने लगे । वह बोल उठा - हा ! हा ! सुन्दरी ! क्या ऐसे दुःखों का अनुभव करने के लिए ही तुम्हारा मुझसे सम्बंध हुआ था ? प्रिये ! भोग के योग्य तुम्हारे इस सुन्दर शरीर ने किस तरह उन असह्य दुःखों को सहा होगा? प्रिये ! बलसार ने तुमसे छीनकर उस हमारे पुत्र को कहाँ रखा है।
मलया - "स्वामिन् ! उस सार्थवाह ने इसी नगर में किसी गुप्त स्थान पर पुत्र को रखा है । परन्तु निश्चित स्थान के बिना यह बालक हमें किस तरह मिल सकता है ?"
महाबल - "प्रिये ! किसी प्रकार इस कुएँ से बाहर निकल जायें फिर कुमार की तलाश करुंगा।"
मलया - स्वामिन् ! मेरे निकाले बाद आपने किस तरह इतना समय बिताया । इस प्रश्न के उत्तर में महाबल ने पल्लीपति की विजय से लेकर आज तक का सर्व वृत्तान्त कह सुनाया । अपनी बीती बातों में ही उन्होंने शेष रात पूरी की । इधर प्रातःकाल होने पर जब मलयासुन्दरी को गायब पाया तब पहरेदार ने शीघ्र ही राजा कंदर्प को उसके भाग जाने का समाचार दिया । राजा अनेक राजपुरुषों को साथ ले मलयासुन्दरी के कदम दर कदम के अनुसार चल उसकी खोज निकालता हुआ उसी अन्धकूप के पास आ पहुँचा । कुएँ में देखने से वे दोनों स्त्रीपुरुष देखने में आये । राजा समझ गया कि यह पुरुष कोई इस स्त्री का अवश्य सगा - सम्बन्धी होगा । इसीलिए उसने इस वक्त अपना स्वाभाविक स्त्री रूप बना लिया है और उससे वार्तालाप कर रही है । इत्यादि कुछ सोचकर राजा ने उनसे कहा - मैं तुम दोनों को अभयदान देता हूँ। तुम दोनों कुएँ से बाहर निकलो । रस्सियों के साथ बाँधकर माचियाँ कुएँ में लटकायी जाती है; उन पर चढ़ बैठो। मैं उन्हें खिचवाकर तुम्हें बाहर निकलवाता हूँ । मलयासुन्दरी ने महाबल से कहा - प्रियदेव ! यही वह कंदर्प राजा है जो विषयांध होकर मेरी अत्यंत कदर्थना कर रहा है। अब यह मेरे पदचिन्ह देखता हुआ यहाँ आ पहुँचा
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