Book Title: Mahabal Malayasundari Charitra
Author(s): Tilakvijay, Jayanandsuri
Publisher: Ek Sadgruhastha

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Page 192
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःख है। मुझे यह शक है कि मुझ पर आसक्त होने के कारण यह दुष्ट आपको न मार डाले । महाबल बोला - प्रिये ! इस बात का मुझे भय नहीं है, किसी तरह इस कुएँ से बाहर निकल जाऊँ फिर तो इसके निग्रह का कोई न कोई उपाय ढूँढ़ निकालूँगा । तुम किसी तरह का भय मत करो, एक मंचिका पर तुम बैठ जाओ और दूसरी पर मैं बैठता हूँ । मलयासुन्दरी पति की आज्ञा मंजूरकर एक मंचिका पर बैठ गयी और दूसरी पर महाबल ! मंचिकायें खींची जाने लगीं, मानो राजा अपना वंश उच्छेदन करने के लिए पाताल से नागकुमार को आकर्षण कर रहा हो इस तरह उन दम्पती के मंचको को उसने खिंचवाया । जब वह मंचिकायें कुएँ के किनारे तक आ गयी तब राजा ने पहले मलयासुन्दरी की मंचिका बाहर निकलवायी । किनारे के नजदीक आयी हुई मंचिका पर नागकुमार के समान रूपवान बैठे हुए महाबल को देखकर राजा विचार में पड़ गया । ऐसे सुन्दर पतिवाली स्त्री ताड़ना - तर्जना करने पर भी मेरे जैसे मनुष्य को कदापि स्वीकार न करेगी । इसलिए इस सुन्दर युवक को बाहर निकालना ठीक नहीं । यह सोच उसने तलवार से महाबल के मंच का रस्सा काट दिया । रस्सा कटते ही निरालम्बन हो महाबलकुमार अपने मंचसहित शीघ्र ही वापिस कुएँ में जा गिरा । यह देख मलयासुन्दरी भी फिर से वापिस कुएँ में गिरने के लिये छटपटायी । परन्तु उसे राजा ने झट से पकड़ लिया और उसे वह अपने महल में ले गया । महल में लाकर राजा ने मलयासुन्दरी से कहा - "सुन्दरी ! वह मनुष्य कौन था ? उसका नाम क्या है ? वह तुझे किस तरह मिला ? और वह कहाँ का रहनेवाला है । इत्यादि अनेक प्रश्न पूछे परन्तु मलयासुन्दरी को इन प्रश्नों का उत्तर देने का समय ही कहाँ था ? उसे अपने पति के वियोग में विवश हो रुदन करने के सिवा और कुछ न सुझता था खाने पीने के लिए आग्रह करने पर उसने साफ कह दिया कि जब तक मैं उस मनुष्य का दर्शन न करुँगी । तब तक अन्नजल ग्रहण न करुँगी । कंदर्प ने सोचा उस पुरुष को कुएँ से बाहर निकलवाना मेरे लिए किसी तरह भी लाभदायक नहीं है और इसे अन्तेउर में रखना भी योग्य नहीं । क्योंकि यदि इसने वहाँ पर रहकर पुरुषरूप कर लिया तो यह मेरे सारे अन्तेउर को खराब करेगा । इत्यादि विचारों से मलयासुन्दरी को राजपुरुषों के विशेष पहरे में राजा - में वियोगी मिलन 175

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