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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
याचनाकर मलयासुन्दरी उस अंधकूप में कूद पड़ी ।
मलयासुन्दरी की खोज में महाबल को लगभग एक वर्ष पूर्ण होने आया था । उसने भूख, प्यास और निद्रा को त्यागकर देशभर के बड़े - बड़े तमाम शहर, जंगल, पहाड़, और गुफायें ढूँढी, परन्तु उस मलयासुन्दरी का समाचार तक भी कहीं न मिला। सिर्फ एक सागर तिलक शहर ही बड़े शहरों में से खोज किये बिना रहा हुआ था, सो यहाँ भी वह आज संध्या के समय आ पहुँचा है। भूख प्यास और रास्ते के परिश्रम से आज वह बहुत ही थक गया था । परन्तु उसके मनमें जो अपनी प्रिया का प्रेम था वह जरा भी कम न हुआ था । इसी कारण आज उसके मनमें ये विचार पैदा हुए - "निमित्तज्ञ ज्ञानी के कथनानुसार आज सालभर से अधिक समय हो गया, परन्तु मिलने की तो बात दूर रही प्रिया का कहीं पर समाचार तक भी नहीं मिला । यदि कल इस शहर में भी कुछ पता न लगा तो आत्मघात कर इस भारभूत निरस जीवन का अन्त कर देना योग्य है।
दुःख में वियोगी मिलन
रात पड़जाने से महाबल शहर से बाहर ही उसी पुराने मठ में ठहर गया था जिसके पास खड़ी होकर कुछ देर पहले मलयासुन्दरी ने मरणोन्मुख होकर पूर्वोक्त उद्गार निकाले थे । उस मठ में पड़े हुए महाबल ने पूर्वोक्त विचारों की उधेड़बुन में मलयासुंदरी के अन्तिम शब्दों को सुन लिया था । इससे वह एकदम चकित हो उठ बैठा और बोला - "अहा ! यह तो मेरी ही प्रिया के सरीखी किसी दुखित सुन्दरी के मृत्यु सूचक अन्तिम शब्द मालूम होते हैं । यह विचारकर और यों बोलता हुआ "सुंदरी ! ठहरो! साहस मत करो; वह दौड़कर उस अन्धकूप के पास आया । परन्तु दुर्दैववशात् महाबल के वहाँ पहुँचने से पहले ही वह अन्धकूप में झंपापात कर चुकी थी। महाबल का भी अपनी प्रिया के प्रति कुछ कम प्रेम न था । अतः उसने भी मलयासुन्दरी के पीछे उसी कुएँ में झंपापात कर दिया ।
उस जल रहित कुएँ में पड़ने बाद महाबल ने अपनी तकलीफ कुछ न गिनते हुए अपने से पहले पड़े हुए मनुष्य को देखा तो मालूम हुआ कि यह गाढ़ मूर्च्छा में पड़ा है । और किसी विशेष वेदना का अनुभव करते हुए मंदस्वर से
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