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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
निर्वासित जीवन के समान निर्मल मैं अपने शील को कलंकित न करूंगी । बलसार अभी तक यह समझ रहा था कि स्त्री जाति है, समझाने बुझाने से और खातिर करने पर खुद बखुद धीरे - धीरे रास्ते पर आ जायगी । परंतु मलयासुंदरी के निश्चयात्मक वचन सुन उसके तमाम मनोरथों पर पानी फिर गया । अब उसके हृदय में मलयासुंदरी पर के प्रेम ने क्रोध का रूप धारण कर लिया। उसने क्रोध में आकर फिर से उसके बच्चे को छीन लिया और उसे एक मकान में बंदकर वह अपने घर चला गया । घर पर अपनी प्रियसुंदरी नामक स्त्री के पास जाकर बोला - प्रिये ! आज मैं अशोक बगीचे में गया था वहां पर मुझे श्रेष्ठ लक्षणोंवाला और सुंदर रूपवान यह लड़का पड़ा हुआ मिला है । निःसंतान होने से हमें रातदिन पुत्र की चिंता रहती थी । आज हमें परमात्मा ने यह पुत्र दिया है । तुम बड़ी हिफाजत के साथ इस का पालन पोषण करो । निःसंतान प्रियसुंदरी भी उस सुंदर बालक को देख बड़ी खुश हुई । बलसार ने उसका नाम भी अपने नाम पर 'बल' रखा और उसका पालन करने के लिए एक धाय भी रख दी ।
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सागरतिलक भी एक बड़े बंदरगाह का शहर था। वहां पर कंदर्प नामक राजा राज्य करता था और व्यापारी लोग भी वहां पर बड़े धनाढ्य थे । उन बड़े व्यापारियों में से ही एक यह बलसार सार्थवाह भी था । बलसार अति धनाढ्य होने पर भी उसके हृदय में सारी दुनिया का धन बटोरकर अपने घर में एकत्रित कर लेने की लोभ की भावना सदैव जागृत रहती थी । इसीलिए वह प्रायः व्यापार के निमित्त परदेश में ही अधिक फिरा करता था । अब उसने व्यापार के निमित्त समुद्र मार्ग से बर्बरकूल जाने की तैयारी की । जहाज तैयार हो गये । मोहांध बलसार ने मलयासुंदरी को बलात्कार से अपने साथ ले लिया । समुद्र मार्ग में गमन करते हुए जहाज में बैठी हुई मलयासुंदरी के हृदय में अनेक प्रकार की भावनायें पैदा होने लगीं । क्या यह दुराशय सार्थवाह मुझे समुद्र में डाल देगा? या परदेश में ले जाकर कहीं बेच देगा? खैर मेरा चाहे जो हो परंतु इस दुष्ट ने न जाने मेरे पुत्र को कैसी स्थिति में रखा होगा? पुत्र के दुःख से दुःखित हो उसने फिर बलसार से पूछा- तुमने मेरे बच्चे को कहां रखा है? यह सुन बलसार
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