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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
निर्वासित जीवन सर्वथा निर्दोष मालूम होती है । ऐसी निर्दोष अबला पर शस्त्र चलाना यह महान निर्दयता वाले कर्म चांडाल का काम है । पहले जन्म में किये हुए अशुभ कर्म के कारण यहां दूसरे के सेवक बने हैं । अब निर्दोष स्त्री की हत्याकर न जाने कैसी नीच गति को प्राप्त होंगे । इसीलिए हमें चाहिए कि इस स्त्री की हत्या अपने शिर पर न लेकर हिंसक पशुओं से परिपूर्ण इस अटवी में इसे जीवित छोड़ जायें । किसी हिंसक प्राणी का शिकार बनकर यह स्वयं अपने प्राणों को त्याग देगी और हम इस पाप से बच जायेंगे । वे परस्पर विचार कर मलयसुंदरी को जीवित ही उस निर्जन जंगल में छोड़ वापिस लौट आये । उन्होंने राजा से आकर कह दिया - महाराजा! आपकी आज्ञानुसार हम उस स्त्री को निर्जन जंगल में मार आये । यह सुन राजा बड़ा खुश हुआ और विचारने लगा कि उस राक्षसी के मर जाने से अब नगर की सारी बिमारी खुद बखुद शांत हो जायगी । अब कनकवती को खुश करने के लिए राजा ने नगर में उसकी तलाश करायी परंतु उसका कहीं पर भी पता न लगा । अब राजकुमार का महल सूना रहने के कारण राजा ने तमाम दरवाजों पर ताले लगा उन पर सिल लगवा दिये।
___ महाबल की सेना विजय के गर्व से आनंद मनाती लौट रही है । उसके सैनिकों को अपनी-अपनी वीरता पर गर्व के साथ पूर्ण विश्वास हो रहा था। यों तो महाबल के सैनिकों में सभी तलवार के धनी थे । बात पर जान देनेवाले, उसके इशारे पर आग में कूदनेवाले, उसकी आज्ञा पाकर एकबार आकाश के तारे तोड़ने को भी चल पड़ते; किन्तु युद्ध कुशलता में महाबल सबसे बढ़ा हुआ था। वह अन्य वीरों की भांति अक्कड, मुंहफट या घमंडी न था । और लोग अपनी वीरता को खूब बढ़ा - बढ़ा कर कथन करते । आत्मप्रशंसा करते हुए उनकी जबान न रुकती थी। महाबल जो कुछ करता शांतभाव से और विचारशील से करता । अपनी प्रशंसा करना तो दूर रहा - वह चाहे किसी शेर ही को क्यो न मार आया हो उसकी चर्चा तक न करता । उसकी विनयशीलता और नम्रता संकोच की सीमा से भी बढ़ गयी थी । और लोग समर में रात्रि के समय मीठी नींद सोते, परंतु महाबल तारे गिनगिनकर रात काटता था । क्योंकि वह शरीर
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