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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
निर्वासित जीवन महाबल - पिताजी! उस पापिनी के असत्य वचनों से प्रेरित हो आपने व्यर्थ ही अपने निर्मल कुल में कलंक लगाया है; इतना ही नहीं परंतु आपने अपने वंश का विच्छेद किया है । इस प्रकार बोलता हुआ पत्नी के वियोग से दुःखित हुआ राजकुमार उदासीनता धारण किये अपने महल की तरफ चल पड़ा । पुत्र के दुःख से दुःखित हो राजा भी कुमार के पीछे - पीछे उसके महल में आया और दरवाजों पर लगे हुए सिल तोड़कर, ताले खोल दिये । एक जगह की तरफ दृष्टिकर राजा बोला - देखो बेटा! इस जगह तुम्हारी प्रिया मलयासुंदरी राक्षसी के रूप में नग्न होकर नाचती, कूदती अनेक प्रकार के फूत्कार करती हुई मैने कई सुभटों के साथ बहुत देर तक उस सामनेवाले मकान पर से देखी थी । इसलिए उसे शिक्षा करने में मेरा अपराध ही क्या है? यदि शरीर का कोई अंगउपांग गल जाय तो क्या उसे नहीं कटवा दिया जाता? कुमार मन ही मन विचारने लगा ठीक है अब बोलने की कोई कीमत नहीं । अगर वह जिन्दी मिल गयी तो तमाम बातें मालूम हो जायेंगी, इत्यादि विचार करते हुए वह अपने मकान में रखी हुई सार वस्तुयें देखने लगा । क्रम से उस संदूक का ताला खोलने पर बिल्कुल नंगी राक्षसी के रूप में क्षुधा से दुर्बल हुई वह छिन्न नासिका कनकवती संदूक में पड़ी नजर आयी । उसे देखते ही राजा आदि सबही स्तब्ध हो गये । महाबल जोश में आकर बोल उठा पिताजी! राक्षसी के रूप में नाच करती हुई आपने उस रात में इसी स्त्री को देखा था? यों कह कुमार ने उस स्त्री का हाथ पकड़कर उसे संदूक से बाहर निकाली । जब उस पर निष्ठुरता पूर्वक कुमार ने ठोकरों की मार शुरू की तब उसने कांपते हुए अपना तमाम प्रपंच प्रकट कर दिया । अब अविचारित किये हुए कार्य का राजा को महान् पश्चात्ताप करना पड़ा । सचमुच ही ऐसे उलझन भरे प्रसंगों में ही बुद्धिमानों की बुद्धिमत्ता, धैर्यवानों की धीरता, विवेकी पुरुषों की विवेकता, दीर्घ दर्शियों की दीर्घ दर्शिता और विचार शीलता का निर्णय होता है।
राजा के पश्चात्ताप और गुस्से की हद न थी, वह इस कार्य से लोगों में मुख दिखाने लायक भी अपने आपको न समझता था; इसीलिए छिन्न नासिका
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