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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र घटना चंपकमाला रानी इस समय एक जुदे ही महल में थी । राजा या कनकवती को इस बात का पता न था । बाद में उसे यह बात मालूम होने पर सौकनपन की आपसी ईर्षा से एवं अपनी पुत्री की लघुता न हो इस कारण उसने इस बात पर बिल्कुल लक्ष्य न दिया । तथा इस विषय में उसने किसी से बात तक भी न निकाली। ___अब अपनी लघुता हुई देख रानी कनकवती दुःखी हो सोचने लगी - 'मैं अपने हाथों से द्वार का ताला लगा गयी थी और वह वैसा ही लगा पाया, फिर भी वह कुमार कैसे निकल गया? यह क्या हुआ! मैंने प्रत्यक्ष उसे अपनी
आंखों से देखा था । क्या मुझे यह भ्रम हुआ है? हाय! सब मनुष्यों में मेरी कैसी निंदा होती है! आज सबके बीच में मैं असत्य बोलनेवाली साबित हुई! किसी पूर्व जन्म की दुश्मन यह कुमारी ही मेरी इस लघुता का कारण है । इसको देखते, ही मुझे उद्वेग होता है । मैं इसे संकट में डालकर या प्राणदंड दिलाकर कब बदला लूंगी? इस तरह बड़बड़ाती हुई वह अपने महल में चली गयी ।
कोलाहल शांत होने पर बड़ी सावधानता के साथ मलयासुंदरी ने चारों तरफ देखभालकर मकान का दरवाजा बंद कर लिया; अब महाबल ने भी अपने मुख से गुटिका निकालकर अपना स्वाभाविक रूप बना लिया था । वह कुमारी से कहने लगा - "राजकुमारी! यह सब महिमा इस गुटिका की है।
मलया - 'कुमार! यह गुटिका आपको कहाँ से मिली?'
कुमार – एक दिन हमारे शहर में एक विद्यासिद्ध पुरुष आया था, उसकी मैंने खूब सेवा की थी । संतुस्ट होकर उस सिद्धपुरुष ने रूप परावर्तन करने
आदि के मुझे अनेक प्रयोग बतलाये हैं । वे सब मैंने सिद्धकर रखे हैं । उन्हीं में से यह एक गुटिका भी है; जिसके प्रभाव से आज हम दोनों संकट से उत्तीर्ण हुए हैं।
मलया – 'इस तरह के चमत्कारिक प्रयोगवाली क्या दूसरी गुटिका भी आपके पास है?'
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