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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
हस्योद्घाटन हुआ दुःख से विकलित हो वह पुरुष गश खाकर सहसा पृथ्वी पर गिर पड़ा।
इस आधी रात के समय कनकवती के महल में आनेवाले ये दो पुरुष कौन हैं? इस बात का भेद पाठक स्वयं समझ गये होंगे । गश खाकर जमीन पर मूर्छित अवस्था में गिर जाने वाला स्वयं महाराज वीरधवल है और साथ में दूसरा मुख्यमंत्री सुबुद्धि है । वे रात्रिचर्या देखने के लिए न निकले थे । उन्होंने अभी तक भी सच्चाई का निर्णय करने का प्रयास न किया था; अगर इतनी दीर्घ दृष्टि की होती तो मलयासुंदरी को जीवित दशा में कुएँ में फेंकवा देने का प्रसंग न आता। वे इस धारणा से कनकवती के महल पर आये थे कि कनकवती ने राज्य पर आक्रमण करने और राजा को मारकर निर्वंश करने का भयंकर खुपिया भेद जानकर राज्य पर महान् उपकार किया है, इसलिए इस समय उसके पास जाकर कुछ विशेष हकीकत जाननी चाहिए और उसका महान् उपकार मानना चाहिए । इसी उद्देश से विशेष रात जाने पर भी मंत्री और महाराज कनकवती के महल पर आये थे। परंतु यहां आते ही कनकवती के उग्र पाप का घड़ा फूट गया । उसके गुप्त प्रपंच का पड़दा फास हो गया। और उसके प्रपंच में फंसकर, पूर्वा पर विचार न कर, रासभवृत्ति करनेवाले राजा वीरधवल के हृदय का भी अंधकार दूर हो गया । राजा की पुकार और जमीन पर पड़ने का शब्द सुनते ही सारे राजमहल में अकस्मात् कोलाहल और हाहाकार मच गया । वहां पर शीघ्र ही अनेक राजपुरुष एकत्रित हो गये और राजा को होश में लाने का उपचार करने
लगे।
"हे पथिको! इस अवसर का लाभ उठाकर मैं और मेरी स्वामिनी कनकवती हम दोनों जनीं मृत्यु के भय से पिछली तरफ की खिड़की से नीचे जमीन पर घिसर पड़ी। हमें थोड़ी सी चोट तो जरूर लगी; परंतु मृत्यु भय के सामने वह कुछ भी मालूम नहीं थी। हम वहाँ से भागकर , एक शून्य मकान में जा घूसी और वहाँ छिपकर पासवाले रास्ते से आते जाते लोगों का वार्तालाप सुनने लगीं।" इतना कहकर सोमा बोली - "हे कुमारो! अभी तक जो मैंने आपके सामने वृत्तांत कहा है यह सब मेरी नजर से देखा हुआ और स्वयं अनुभव
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