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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
कठिन परीक्षा - 'हे पन्नगाधिराज! मैंने तुम्हें अनेक प्रकार से कष्ट पहुंचाया है, कृपाकर मेरा अपराध क्षमा करो।
राजा जब यह कर रहा था तब मलयासुंदरी ने उस सर्प को नीचे जमीन पर रख दिया । राजा ने दूध मंगाकर उस सर्प के सामने रखा । जब सर्प ने दूध पी लिया तब राजा ने उस सर्प को लानेवाले गारुडियों से कहा इस नागराज को जहां से तुम लाये हो; उसी जगह इस तरह छोड़ आओ कि जिससे इसे जरा भी तकलीफ न होने पावे । यदि इस नागदेव को वहां छोड़ने तक जरा भी तकलीफ पहुंची तो मैं तुम्हें प्राणदंड की शिक्षा दूंगा । राजा का आदेश पाते ही गारुड़ी लोग उस सर्प को बड़ी हिफाजत के साथ उठाकर ले गये।
अब राजा मलयासुंदरी से पूछने लगा - 'भद्रे! तूं पहले पुरुष रूप में थी और इस समय हमारे देखते हुए तेरा स्त्रीरूप बन गया, इस बात में क्या रहस्य है? अपना सच्चा वृत्तांत सुनाकर हमारे सबके मन को शांत कर । मलयासुंदरी इस समय यह विचार कर रही थी कि पहले भी मेरे मस्तक पर किये हुए तिलक को मेरे स्वामी के थूक से मिटाने पर मेरा स्वाभाविक रूप बन गया था और उन्होंने मुझे यह कहा भी था कि जब तक मैं अपने थूक से इस तिलक को न मिटा दूंगा। तब तक तेरा स्वाभाविक रूप कदापि न होगा; परंतु इस वक्त तो इस सर्प के ही तिलक चाटने से मेरा स्वाभाविक रूप बन गया! यह लक्ष्मीपूंज हार भी इस सर्प के मुख में से निकला, तो क्या मेरे स्वामी ने ही इस सर्प का रूप धारण किया होगा? यह बात समझ में नहीं आती । यदि इस वक्त मैं अपनी सत्य घटना राजा को सूना दूं तो उसमें किसी तरह की हानि मालूम नहीं होती यह सोचकर मलयासुंदरी बोली – महाराज! मैं चंद्रावती नरेश महाराज वीरधवल की मलयासुंदरी नामा पुत्री हूँ, इसके सिवाय और मैं कुछ नहीं जानती । ___भद्रे! तेरा यह वचन विश्वास करने योग्य नहीं है क्योंकि जब तूं पुरुष रूप में थी तब कुछ और कहती थी। फिर कहां चंद्रावती और कहां पृथ्वीस्थानपुर नगर! बासठ योजन का अंतर और फिर महाराज वीरधवल की कन्या यहां पर
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