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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
सुख के दिन शूरपाल से कहा – महाराज! यदि आपकी मुझ पर पूर्ण कृपा हो तो मैं आज आपके हित की एक बात करनी चाहती हूं । राजा बोला - भद्रे! मैं तुझे अभय वचन देता हूं; चाहे जैसी गुप्त बात हो तूं निःशंक होकर कह । यदि उससे तुझे कुछ भय उत्पन्न होने की संभावना हो तो मैं तेरी पूर्ण रक्षा करूंगा।
कनकवती - महाराज! आपको मालूम ही होगा आपके शहर में कितनेक दिनों से 'मारी' नामक रोग चल रहा है । यह उपद्रव किसी राक्षसी का किया हुआ है । चाहे साक्षात् वह राक्षसी यहां पर न भी आती हो तथापि राक्षसी के जैसी चेष्टायें करने से रोग की उत्पत्ति या उसकी वृद्धि हो सकती है । ऐसा करनेवाली को राक्षसी कहने में किसी प्रकार का दोष नहीं है । इस प्रकार का जनसंहार करनेवाली राक्षसी यदि आपके ही राजकुल में हो तो क्या आप उसे शिक्षा देकर अपनी प्रजा को नहीं बचा सकते? यह सुन राजा बोला - भद्रे! मेरे राजकुल में ऐसी कौन दुष्टा है? सच बोल मैं उसे पूर्ण शिक्षा देकर अपनी प्रजा का रक्षण करूंगा । कनकवती बोली – महाराज! सच पूछो तो गुलाब में कांटे के समान आपकी प्रजा का संहार करनेवाली आपकी पुत्रवधु मलयासुंदरी ही है, यदि आपको मेरे इस वचन पर विश्वास न हो तो रात्रि के समय आप दूर रहकर उसकी चेष्टायें प्रत्यक्ष देखकर, निश्चय करें। वह रात्रि के समय राक्षसी का रूप धारणकर अपने गृहांगण में भ्रमण करती है, कूदती है, नाचती है, चारों तरफ देखती है और मंद - मंद स्वर से भयंकर फुकार करती है, इस कारण शहर में मारी नामक रोग विशेष वृद्धि को प्राप्त होता है । ये चेष्टायें देखकर यदि आप रात्रि में उसी समय उसे पकड़ना चाहेंगे तो वह आपको भयंकर उपद्रव करेगी इसीलिए सुबह होने पर आप उसे सुभटों द्वारा पकड़वाकर इच्छित शिक्षा करें। इस प्रकार कपट प्रपंच की बातें कर कनकवती मौन रह खड़ी रही।
राजा प्रथम से ही शहर में पसरी हुई मारी का कारण जानने के लिए उत्सुक था । अब यह कनकवती की बातें सुनकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । वह एक
औरत के कपटपूर्ण वचनों से प्रेरित हो, विचारने लगा । अहो! यह कैसी बात! मेरे निर्मल कुल में ऐसा कलंक! क्या सचमुच ही मेरी पुत्रवधु मलयासुंदरी
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