Book Title: Mahabal Malayasundari Charitra
Author(s): Tilakvijay, Jayanandsuri
Publisher: Ek Sadgruhastha

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Page 161
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र सुख के दिन उठकर मलयासुंदरी के महल में आयी । इस समय मलयासुंदरी अपने महल में उदास होकर बैठी थी। पति वियोग के दुःख से उसके नेत्रों से आंसुओं की बूंदे पड़ रहीं थीं । वह हाथ पर मुख रखे हुए विचार दशा में निमग्न हो रही थी। कनकवती के आने की आहट सुन उसने ऊंची गर्दनकर अपनी सौतेली माता को आयी देख उसने उसे कुछ आदर दिया । अवसर देखकर कनकवती ने उसकी उदासीनता को दूर करने के लिए कोई ओर विषय छेड़ा; उसकी बातों के प्रसंग से मलयासुंदरी का सारा दिन सुख शांति में व्यतीत हुआ । पतिवियोग के दुःख में उसकी मीठी बातें सुन सरल हृदया मलयासुंदरी बोली - माता! तुम रात को भी यहां ही रह जाया करो जिससे दिन के समान तुम्हारे समागम से मेरी रात भी सुख से बीत जायगी । मन को इच्छित होने के कारण कनकवती ने खुशी से उसकी बात स्वीकार कर ली । रात को भी कनकवती ने दिन के समान ही अनेक बातों से मलयासुंदरी के मन को प्रसन्न रखा । प्रातःकाल होते ही कुछ सोच विचारकर कनकवती ने मलयासुंदरी को कहा – बेटी! तुझे उपद्रव करने के लिए रात्रि में यहां पर एक राक्षसी फिरा करती है । रात को जब तूं सो गयी थी उस समय मैंने प्रत्यक्ष उसको देखा था। जागृत रहने के कारण मैंने तुझ पर उसका कोई उपद्रव नहीं होने दिया । यदि तेरी मर्जी हो तो मैं भी उस राक्षसी के साथ उसके जैसा ही वेष धारण कर उसे ऐसी शिक्षा दूं कि जिससे वह फिर कभी इधर देखे तक भी नहीं । क्योंकि मैं भूत प्रेतों को निग्रह करने के मंत्र तंत्रादिक भी जानती हूं । क्या तुम्हें मालूम नहीं कि राक्षसी और चुड़ेलों को निवारण करने के अनेक प्रकार के तांत्रिक प्रयोग होते हैं। ____विचारशील होने पर भी भाग्य के चक्र में पड़कर मलयासुंदरी ने उस दुष्टा की बात मंजूर कर ली । दैववशात इस समय नगर में मारी बिमारी का जोर बढ़ रहा था। कोई दिन ऐसा न जाता था कि जिस दिन दस पंद्रह मनुष्य मृत्यु के ग्रास न बनते हों । मलयासुंदरी को पूर्वोक्तप्रकार से समझाकर अपने घर जाने का बहाना ले कनकवती सीधी महाराज शूरपाल के पास पहुंची । वहां जाकर उसने राजा से एकांत में बात करने की प्रार्थना की प्रार्थना मंजूर होने पर उसने महाराज 144

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