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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
सुख के दिन की पूर्व सरहद पर रहनेवाला - क्रूर नामक पल्ली पति हमारे देश में घुसकर प्रजा को लूट ले जाता है । उसके पास कुछ सेनाबल भी हो गया है । मैंने उस पर आक्रमण करने के लिए दो दफा सेनापति को भेजा, परतु वह पराजित न हो सका उलटा हमें ही बहुत कुछ नुकसान उठाना पड़ा । तुम्हारे सिवा उसके बढ़ते हुए गर्व को और कोई नहीं उतार सकता । सीमा समीप की किसी भी ताकात को बढ़ने देना हमारे लिये खतरनाक है । इसीलिए मेरी राय है कि इस समय प्रबल सेना साथ लेकर तुम खुद ही उस पर आक्रमण करो और उसे परास्तकर अपने सीमाप्रांत को सदा के लिए निरुपद्रव करो। यह सुनकर विनयपूर्वक हाथ जोड़कर राजकुमार बोला – पिताजी! आपकी आज्ञा शिरोधार्य है । आप आज ही सेनापति को सेना तैयार करने की आज्ञा फरमावें । आपके आशीर्वाद से मैं आपकी आज्ञानुसार आक्रमण कर उसे आपका सेवक बनाकर ही वापिस लौटूंगा।
राजाज्ञा से सेना में पल्लीपति पर चढ़ाई करने की तैयारियां होने लगी । राजकुमार स्वयं सेनापति बनकर पल्ली पति पर आक्रमण करेंगे यह सुनकर सैनिकों में उत्साह का पार न रहा। वे दूने उत्साह से समर की तैयारी करने लगे।
अब पिता को नमस्कारकर महाबल अपने महल में गया । पिता की आज्ञा सुनाकर उसने युद्ध में जाने के लिए मलयासुंदरी से विदा मांगी, वह बोली प्राणनाथ! आप खुशी से युद्ध करें, परंतु मैं आपके साथ ही चलूंगी। आप मुझे यहां रहने के लिए विवश न कीजिए । आपके परोक्ष में ही मुझ पर विपत्ति के पहाड़ टूट पड़ते हैं । इसीलिए आप इस दासी को जुदी न करें ।
महाबल प्यारी ! समर भूमि में तुम्हें साथ ले जाने का समय नहीं है। तुम सगर्भा हो और पूरे दिन होने आये हैं। थोड़े ही दिन बाद भावी राज्य कर्ता का जन्म होनेवाला है । ऐसी परिस्थिति में मेरे साथ चलना तुम्हारे लिये सर्वथा अनुचित है । प्रसूति का समय आ रहा है । इस वक्त पहाड़ी मार्ग की विषमता और युद्ध का प्रसंग, ये तमाम बातें तुम्हारे इस नाजुक शरीर के लिए बिलकुल प्रतिकूल है । तुम धैर्य धारण कर यहां ही रहो । यहां तुम्हें सब तरह से आराम रहेगा । शत्रु को परास्तकर मैं शीघ्र ही समर से वापिस आ जाऊंगा । कभी विषम
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