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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
कठिन परीक्षा एकाकी किस तरह आ सकती है? खैर यदि यह बात सच ही होगी तो इतमिनान होने पर या वहां से कोई इसकी खोज में आयगा तो इसका सत्कार कर उसके साथ इसे वापिस भेज दिया जायगा । अब रानी के सामने नजर कर राजा ने कहा प्रिये! लक्ष्मीपूंज हार सहित अभी तो तुम इस कन्या को अपने पास ही रखो । प्रतिज्ञा के अनुसार हार पांच ही दिनों में आ गया है। सत्य प्रतिज्ञा वाला कुमार भी किसी स्थान पर सुखी या दुःखी अवस्था में अवश्य होगा और वह अब जल्दी ही आ मिलेगा अतः अब तुम प्राण त्याग के अभिप्राय को त्याग दो, क्योंकि हार के लिए की हुई प्रतिज्ञा भी तुम्हारी पूर्ण हो चुकी है। ' रानी पद्मावती - प्राणनाथ! पुत्र रत्न को खोकर क्या इस हार की प्राप्ति से मुझे संतोष हो सकता है? मैं अपने इकलौते सद्गुणी पुत्र के सिवाय किस तरह जीवन धारण कर सकती हूँ? मेरी बुद्धिमत्ता को धिक्कार है, मैंने मूढ़ता में आकर इस हार के लिए अपने प्राणप्यारे पुत्र को संकट में डाला, सचमुच यह मैंने वैसा ही किया जैसे कोई मूर्ख मनुष्य नीम के लिए अपने घर में लगे हुए कल्पवृक्ष को नष्ट कर देता है। प्यारे पुत्र को खोकर अब मैं जीवित नहीं रह सकती । इसलिए महाराज मुझे आज्ञा दें मैं झंपापात करके प्राण त्याग करूंगी।
देवी! मैंने तुम्हें प्रथम ही कह दिया कि कल तक धीरज धारण करो । जब लक्ष्मीपूंज हार मिल गया तो कुमार भी अवश्य आ मिलेगा। इस प्रकार रानी को धीरज देकर राजा महल में आया। लोग भी आश्चर्य पाते हुए अपने स्थान पर चले गये । मलयासुंदरी ने भी रानी के साथ राजमहल में आकर भोजनकर वह शेष दिन व्यतीत किया । राजकुमार की चिंता में राजा और रानी ने वह दिन और सारी रात बड़े कष्ट से पूर्ण की!
प्रातःकाल होते ही कुमार की खोज में भेजे हुए राजपुरुष चारों तरफ से जैसे गये थे वैसे ही वापिस आने लगे । धीरे - धीरे सबने वापिस आकर उदासीन हो कुमार के न मिलने का समाचार दिया । इस समाचार से राजा और रानी के हृदय में निराशा के घोर बादल छा गये । रानी पद्मावती ने झंपापात कर प्राण
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