________________
श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
सुख के दिन
पाठक महाशय! इस युवक और युवती को पुनः परिचय देने की हमें आवश्यकता प्रतीत नहीं होती, क्योंकि इनकी वार्तालाप से ही आप समझ गये होंगे कि ये दोनों इसी कथानक के नायक नायिका हैं । पहले परिच्छेद में आपने पढ़ा होगा, महाबल राजकुमारी मलयासुंदरी के अकस्मात् गुम होने के कारण उनके वियोग से दुःखित हो महाराज वीरधवल ने उनकी तलाश में अपने पुत्र मलयकेतु को पृथ्वी स्थानपुर की तरफ रवाना किया था । अब वह बहन और बहनोई की खोज करता हुआ पृथ्वी स्थान पुर में आ पहुंचा है । राजसभा में आकर उन दोनों के यहां पहुंच जाने के समाचार सुन वह अत्यंत खुश हुआ और सूरपाल राजा तथा महाबल कुमार ने भी उसका बहुत ही स्वागत किया । उसीसे मलयासुंदरी के माता पिता को दुःखित होने का समाचार मालूम हुआ । मलय केतु का स्वागत करने में ही महाबल कुमार को आज राजा सभा में इतनी देर हो गयी थी ।
राजा के साथ बातचीत किये बाद मलयासुंदरी ने अपने भाई मलयकेतु को रनवास में बुलवा लिया और उससे बड़े प्रेम पूर्वक मिलकर महाराज वीरधवल अपनी माता रानी चंपकमाला आदि का सुख समाचार पूछा । मलयकेतु ने कहा 'बहन! तुम लोगों के अकस्मात् चले जाने से वे महान् दुःख का अनुभव कर रहे हैं ।
महाबल - दैविक प्रयोग से ही हमारा आकस्मिक आगमन हुआ है, इससे मुझे इस बात का दुःख है कि मैं चलते समय उनकी आज्ञा प्राप्त न कर सका । इत्यादि कथन पूर्वक उसने अपनी तमाम घटना कह सुनायी । मलयकेतु - 'अहो! इतने थोड़े समय में आप लोगों ने बड़े भारी दुःख का अनुभव किया । यह कहकर उसने अपनी समवेदना प्रकट की, इसके बाद परस्पर प्रेम की बातें करते हुए उन्होंने अपनी भूख प्यास को भी भुला दिया ।
कुछ समय तक आनंद से वहां रहकर एक रोज मलयकेतु ने महाराज शूरपाल से प्रार्थना की अब आप मुझे घर जाने की आज्ञा दें, जिससे कि मैं जमाई और पुत्री के अमंगल की चिंता से महान् दुःख का अनुभव करते हुए माता पिता
138