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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
कठिन परीक्षा
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त्याग दृढ़ निश्चय कर लिया । निरुपाय हो राजा को भी वैसा ही मंजूर करना पड़ा। अब वे पर्वत शिखर से गिरकर प्राण त्याग करने के लिए समीवर्ति अलंब नामक पहाड़ की तलाटी में आ पहुंचे शहर भर की जनता हैरान थी, मलयासुंदरी के दुःख का भी पार न था ।
पृथ्वीस्थान नगर के समीप प्रचंड प्रवाह में गोला नदी बह रही है । किनारे पर धनंजय यक्ष का मंदिर है । मंदिर से थोड़ी ही दूर एक विशाल घटादार वटवृक्ष है । शाखाप्रशाखाओं से विस्तार पाये हुए उस वटवृक्ष के नीचे अनेक मनुष्य और पशु गण विश्रांति लेते हैं । इसी वटवृक्ष की एक मजबूत शाखा के साथ लटकाकर आज से तीसरे दिन पहले लोहखुर नामक एक चोर को राजा की आज्ञा से मरवा दिया गया था, उस चोर के नजदीक की दो शाखाओं के मध्य में एक युवा पुरुष ओंधे मस्तक लटक रहा था, उसके दोनों पैर दो साखाओं के साथ मजबूत बंधनों से बंधे हुए थे; वह युवक अपने असह्य दुःख के कारण एक शब्द भी मुख से नहीं बोल सकता था। उस तरफ जानेवाले कई एक राहगीर वार्तालाप करते जाते थे कि महाराज सूरपाल तथा पद्मावती रानी पुत्र वियोग में आज झंपापातकर मरने के लिए इस समय पहाड़ की तरफ गये हैं । एक राहगीर का ध्यान लटके हुए महाबल की ओर गया, उसे कुछ संदेह हुआ और उसने राजा आदि परिवार जहां आया था । उस पर्वत की ओर दौड़कर उसने ठहरो - ठहरो महाबल कुमार मिल गया है ऐसी आवाज जोरो से लगायी । लोगों का ध्यान उस की ओर गया । राजा ने उसकी बात सुनकर सुभटों को खोज करने भेजा । सुभटों ने वहां आकर महाबल कुमार को वटवृक्ष से नीचे उतारकर वहां ले आये । महाबल कुमार को किसी तरह की चोट तो लगी ही न थी । सिर्फ बंधन और उलटे मस्तक से लटकने के कारण अत्यंत दुःख सहना पड़ा था । अब वे दोनों कारण दूर होने से धीरे- धीरे वह विशेष स्वस्थ होने लगा । सर्वथा शांति पाकर वह धीरे से बैठा हो गया और चारों और नजर घुमा कर देखने लगा । पास में बैठी हुई मलयासुंदरी पर जब उसकी दृष्टि पड़ी तब अकस्मात् उसके
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