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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र स्वयंवर स्वजनों को जिमाकर स्वयंवर में आये हुए तमाम राजकुमारों के लिए भी उनके स्थान पर ही भोजन का प्रबंध करा दिया गया ।
इस शुभ प्रसंग पर सिद्धज्योतिषी को प्रीतिदान देकर प्रसन्न करने के लिए राजा ने उसकी चारों तरफ तलाश करायी । परंतु उसका कहीं पर भी पता न लगा । इससे राजा यह सोचकर कि वह सचमुच ही परोपकारी दिव्य पुरुष था, अब उसके मिलने की आशा छोड़ बैठा । अब उसने विधिपूर्वक अपनी कुलदेवी की पूजा कर बंधुवर्ग को वस्त्राभरण के दानादि द्वारा संतोषित किया। याचकजनों को भी दान देने में उसने अपनी लक्ष्मी का खूब ही उपयोग किया । राजकुमारी के विवाह के हर्ष में नगर में जगह - जगह उत्सव मनाया जा रहा था । अनेक प्रकार के बाजों की मधुरध्वनि से आकाश गूंज रहा था । कहीं पर मधुर स्वर से गंधर्व लोगों का संगीत हो रहा था, कहीं पर मारे खुशी के स्त्रियों का नृत्य होता था, कहीं कोकिल कंठ से सधवा स्त्रियाँ धवलमंगल गा रही थीं। कहीं पर भाट चारणों के जय जय शब्द उच्चारित हो रहे थे, अनेक आभूषणों से भूषित से वरवधू कल्पलता और कल्पवृक्ष के समान शोभ रहे थे । पाणिग्रहण के समय उज्ज्वल नेपथ्य को धारण करनेवाला यह दंपती युग्म साक्षात्र ति और कामदेव के समान शोभायमान दिख रहा था ।
माता - पिता ने उस नव दंपती को आशीर्वाद दिया कि चंद्र और चांदनी के समान तुम्हारा अविच्छिन्न संयोग कायम रहे । राजा ने अपनी संपत्ति के अनुसार हाथी, घोडा, रथ, हीरा, माणिक, मोति, शस्त्र और ग्रामादि अनेकानेक वस्तुएँ कन्यादान या दहेज में दी । विवाह प्रसंग पूर्ण होने से हर्षित हुए नवदंपती एकांत निवास स्थान में गये । इस समय राजा वीरधवल कुमार के पास आकर, अपने संशय की बातें पूछने लगा। "राजकुमार! आप अपने शहर से स्वयंवर के प्रसंग पर अकस्मात् ही एकाकी किस तरह आ पहुंचे?"
अपनी प्रिया के सन्मुख देखते हुए, पूर्व में परस्पर संकेत किये मुजब कुमार ने उत्तर दिया-"महाराज! मुझे पृथ्वी स्थान से उठाकर किसी देवी ने यहां पर अकस्मात् लाकर रख दिया है।" यह सुन राजा वीरधवल कुछ गर्दन हिलाते
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