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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र स्वयंवर की हुई प्रतिज्ञा के अनुसार ऐसे इस महान और दिव्य स्तंभ को इस तेजस्वी वीणा बजानेवाला युवक ने विदारित किया है, इसलिए कुमारी का पति भी यही होना चाहिए । महाराज वीरधवल के इन अंतिम वचनों को उनके पास ही खड़ा हुआ महाबल ध्यानपूर्वक सुन रहा था । इस समय स्तंभ संपुट के बीच खड़ी हुई मलयासुंदरी के पास कई दासी आ पहुंची और उन्होंने मलयासुंदरी को सहारा दिया ।' आगे बढ़कर मलयासुंदरी बोली-'दासी! कलानिधान वह वीरपुरुष कहाँ है? जिसने मेरे पिता के दुःख के साथ इस स्तंभ को विदारण किया है । मैं उसके गले में वरमाला पहनाऊंगी । मलयासुंदरी की धायमाता वेगवती ने नजदीक में आकर स्तंभ को विदारण करनेवाले उस वीर युवक की ओर इशारा किया । प्रेमपूर्ण नेत्रों से निहारती हुई, अनेक राजकुमारों के मनोरथ निष्फल करती हुई, लोगों के चित्त को संतोष देती हुई, गंधर्व के वेष में रहे हुए तथापि कामदेव के समान रूपवान् महाबल कुमार के गले में मलयासुंदरी ने हर्षित हो, वरमाला पहना दी । मलयासुंदरी के रूप से चकित हो और गांधर्व जाति के युवक के गले में वरमाला आरोपित होने से पराभव पाये हुए राजकुमार परस्पर कहने लगे – 'देखो! इस विदग्धा राजकुमारी की कैसी अधम परीक्षा! उत्तम क्षत्रिय वंश के राजकुमारों को छोड़कर अज्ञात कुलवंशादि वीणा बजानेवाले साधारण मनुष्य के गले में वरमाला डाल दी । इस प्रकार का हम अपना घोर अपमान नहीं सह सकते । हम इस गंधर्व को मारकर भी स्वयंवरा को ग्रहण करेंगे । इस तरह विचारकर मारे ईर्षा के वे सबके सब राजकुमार गंधर्व के वेष में वहां पर अकेले खड़े हुए महाबल की तरफ बढ़ आये । यह देख महाराज वीरधवल ने उस युवक की रक्षा के लिए उसके चारों तरफ अपनी सेना खड़ी कर दी। ___इस समय महाबल भी स्वयंवर में रखे हुए वज्रसार धनुष को उठाकर उन राजकुमारों के सामने आ जुटा । महाबल के अमोघ प्रहारों से तमाम राजकुमार अपने प्राण बचाने के लिए चारों तरफ बिखर गये । उस वक्त स्वयंवर मंडप के प्रसंग पर पृथ्वीस्थानपुर से स्वाभाविकतया आये हुए एक चारण ने ध्यानपूर्वक देखने से महाबल को पहचान लिया और वह उच्च स्वर से बोल उठा – 'हे
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