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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र स्वयंवर चलो तो मैं तुम्हें उस मनुष्य का पता बतलाऊंगा । उन्होंने मेरी बात मंजूरकर और लाया हुआ चोरी का माल नदी किनारे रख उस स्तंभ को उठाया। मेरे कथनानुसार शहर के पूर्व दरवाजे के पास लाकर स्तंभ को खड़ा कर दिया। अब फिर उन्होंने उस चोर के विषय में पूछा । मैंने सोचा - उस बेचारे को मंदिर के शिखर में बतला दिया तो ये उसे जान से मार डालेंगे। यह समझकर मैंने उन्हें असत्य उत्तर दिया "भाई! वह चोर तो संदूक का ताला तोड़कर उसमें से माल निकाल एक पोटली में बांधकर संदूक को नदी में बहा और स्वयं उस पर बैठकर तैरता हुआ नीचे की तरफ चला गया है।" चोर बोले - आपका कथन सत्य ही मालूम होता है क्योंकि वह रातभर संदूक पर बैठकर नदी मार्ग से गमन करेगा
और प्रातःकाल होते ही उस धन की पुटलिया को लेकर कहीं पर चला जायगा । उनमें से एक बोला- भले वह कहीं भी जाय फिर भी तो कभी मिलेगा न? यों बोलते हुए वे चोर मेरे पास से वापित चले गये। मैंने सावधान रह रातभर उस स्तंभ की रक्षा की । जब प्रातःकाल होने पर स्तंभ की खोज में उस तरफ आते हुए राजपुरुषों को देखा तब मैं निश्चिंत होकर गुप्त रीति से चलकर शहर में राजा से आ मिला। इसके बाद का वृत्तांत तुम्हें वेगवती सुनायगी, क्योंकि वह सर्वजन प्रसिद्ध है।" प्रिये! मुझे अब उस चोर की बात याद आयी, अगर उसे मंदिर के शिखर में से बाहर न निकाला जाय तो फिर हमारे गये बाद उसकी क्या दशा होगी? वह बेचारा अंदर ही मर जायगा और उसका दोष मुझे ही लगेगा, इसीलिए तुम यहां रहो मैं उस चोर को बाहर निकालकर तुरंत ही वापिस आता
मलया - "प्राणनाथ! आप मुझे ऐसी आज्ञा न करें । मैं अब आपसे जुदी न रहूंगी । अब आप पहले के जैसे किसी तरह का बहाना निकालकर मुझे छोड़कर नहीं जा सकते । अब तो मेरे मातापिता ने ही आपको मेरा जीवन समर्पण कर दिया है । माता वेगवती! यदि हमारे आने से पहले यहां पर पिताजी आ जायँ तो तुम उन्हें कह देना कि मलयासुंदरी ने गोला नदी के किनारे पर रही हुई देवी की मानता मानी थी, इसीलिए वे दोनों वहां पर नमस्कार करने गये हैं और अभी वापिस आ जायेंगे । वेगवती को इस प्रकार कहकर मलयासुंदरी महाबल के
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