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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
कठिन परीक्षा एक तरफ तो कृष्ण चतुर्दशी की घोर अंधेरी रात, दूसरी तरफ भयानक स्मशान भूमि, पास में बहती हुई गोला नदी के प्रवाह का कल कल नाद, अपरिचित मार्ग चोरों का उपद्रव, प्रतिस्पर्धा से वैरी हुए राजकुमारों का भय, गीदड़ उल्लू वगैरह निशाचर जानवरों के घोर शब्द इत्यादि कारणों से नदी तरफ का मार्ग भयंकर मालूम होता था। ____ महाबल - "प्रिये! ऐसी भयानक स्मशानभूमि और अंधेरी रात में स्त्री सहित फिरना यह मेरे लिये लाभदायक नहीं है । इसीलिए मेरी इच्छा है कि गुटिका के प्रयोग से तुम्हारा पुरुषरूप बनाकर निर्भयता से फिरें।" ___मलया - "स्वामिन्! आपकी इच्छा में ही मेरी इच्छा है । महाबल ने तुरंत ही आमरस में गुटिका घिसकर मलयासुंदरी के मस्तक पर तिलक कर दिया। गुटिका के प्रभाव से पहले के जैसे ही उसका पुरुषरूप बन गया । अब दोनों ने देवी के मंदिर में जाकर मंदिर के शिखर में छिपे हुए चोर को बाहर निकाला; और उसे कह दिया कि कल तेरे साथी तेरी तलाशकर वापिस चले गये । आपने मुझे जीवित और द्रव्यलाभ प्राप्ति में सहाय की है; आपका मैं यह उपकार कदापि न भलंगा । यों कह और नमस्कारकर यह चोर वहां से अन्यत्र चला गया । देवी के मंदिर से वापिस शहर की तरफ आते हुए जब वे समीपवर्ति वटवृक्ष के नीचे आये तब उन्हें उस वटवृक्ष पर कुछ आवाज सुनायी दी । महाबल बोला - "प्रिये! रात्रि के इस भयानक समय में इस वटवृक्ष पर कोई व्यंतर देव वार्तालाप करते हुए मालूम होते हैं । हम भी जरासी देर ठहर कर ध्यानपूर्वक सुनें कि ये आपस में क्या वार्तालाप करते हैं। परंतु व्यंतरों में से कोई तुम्हारे गले का लक्ष्मीपूंज हार न उड़ाले इसीलिए यह हार तुम मुझे दे दो । लक्ष्मीपूंज हार लेकर महाबल ने अपनी कमर में बांध लिया । फिर गुप्तरीति से उस वटवृक्ष की खोखर में खड़े होकर वेदोनों जने बड़ी सावधानीपूर्वक व्यंतर देवों का वार्तालाप सुनने लगे।
एक व्यंतर ने प्रश्न किया - क्यों भाई! किसीने पृथ्वी पर आज कोई नयी घटना देखी या सुनी है?
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