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'श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
कठिन परीक्षा मंत्री बोला - 'महाराज! एक घड़े में सर्प डालकर उसे इसके हाथ से निकलवाया जाय। यदि वह सर्प इसे डस ले तो यह सदोष और यदि वह इसे न डसे तो सर्वथा निर्दोष समझना चाहिए। बस इससे बढ़कर कठिन - परीक्षा और क्या हो सकती है? यह बात मंजूर कर राजा ने गारुड़िकलोगों को बुलवाया और अलंब नामक पहाड़ की किसी गुफा में से एक भयंकर सर्प पकड़ लाने की आज्ञा दी।
राजा ने पुरुष रूपी मलयासुंदरी के पास कुमार के वस्त्र और कुंडलादि उतरवा लिये और उसे कोतवाल की निगरानी में सौंप दिया । ठीक इसी समय राजमहल से रानी पद्मावती की दासी सभा में आकर उदास हो नम्रतापूर्वक राजा से बोली - 'महाराज! महारानी पद्मावती आपसे यह प्रार्थना करती है कि अभीतक भी कुमार की कहीं पर खोज नहीं लगी । उसके कथनानुसार आज पांचवां दिन है, यदि कुमार जीवित रहता तो अवश्य ही अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार वह आज आये- बिना न रहता । लक्ष्मीपूंज हार का भी अभी तक कोई समाचार नहीं मिला । जहां पर कुमार के अस्तित्व का ही अभाव मालूम होता हो वहां हार प्राप्ति की आशा रखना सर्वथा व्यर्थ है । अपने इकलौते पुत्र के अभाव में मैं प्राण धारण करने के लिए सर्वथा असमर्थ हूं। मैंने आज तक आपका जो कुछ दुर्विनय या अपराध किया हो उसे आप कृपाकर क्षमा करें । और मुझे अब आज्ञा दें तो अलंब नामक पर्वत के शिखर से झंपापातकर प्राण त्याग द्वारा मैं अपनी आत्मा को शांति + । राजा बोला - 'दासी! रानी को हिंमत दो और मेरी तरफ से कहो कि यह दुःसह्य दुःख हम दोनों को समान ही है । कुमार की खोज में मैंने चारों तरफ मनुष्य भेजे हैं। उसके लौटने तक धीरज रखो । कुमार की कुछ भी समाचार अवश्य मिलेगा, क्योंकि आज पांचवां दिन है अगर रात तक कुमार का कुछ भी समाचार न मिला तो कल जैसा योग्य होगा वैसा किया जायगा । दासी! आज इस सुंदर आकृतिवाले पुरुष के पास से कुमार के कुंडल और कुछ वस्त्र मिले हैं; संभव है कि इसी प्रकार हार और कुमार भी मिल
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