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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र स्वयंवर हुए बोल उठा – 'आपका कहना सच है; यह सब कार्य हमारी कुलदेवी का ही किया मालूम होता है।"
महाबल - "महाराज! मेरे वियोग को न सहन करनेवाले मेरे माता पिता विरह दुःख से दुःखित हुए मेरी चारों तरफ तलाश करते होंगे । अति स्नेहित हृदयवाले माता पिता की सेवा में यदि मैं बारह प्रहर के अंदर न पहुंच सका तो सचमुच ही वे मेरे वियोग से प्राणत्याग कर देगें । इसलिए आप कृपाकर, मुझे जल्दी विदा करें । यदि मैं प्रतिपदा के दिन सूर्योदय से पहले पृथ्वीस्थानपुर पहुंच जाऊंगा तो मुझे अपने पूज्य माता पिता का मिलाप हो सकेगा; अन्यथा उनका मिलना असंभव सा मालूम होता है।"
राजा - "कुमार! आपको जरा भी चिंता न करनी चाहिए, आपकी तमाम चिंतायें मेरे शिर पर हैं । पृथ्वी स्थानपुर यहां से बासठ योजन है अतः आप रात के प्रथम प्रहर तक सुखपूर्वक यहां रहे; तबतक मैं आपके लिए एक उत्तम जाति की और अतिवेग से चलनेवाली सांडनी तैयार कराता हूँ, तथा कोपायमान हुए उन राजकुमारों को भी सत्कारित कर विदा कर आता हूँ। यों कहकर महाराज वीरधवल वहां से चला गया ।
___ महाबल - 'प्रिये! आज हमारा इच्छित कार्य सिद्ध हुआ । तुम्हारे समक्ष की हुई प्रतिज्ञा आज जनता के समक्ष तुम्हारे पिता की सम्मतिपूर्वक पाणिग्रहण करने से पूर्ण हुई । परंतु पृथ्वीस्थानपुर जाकर, अपनी माता को हार देने की की हुई प्रतिज्ञा अभी सफल नहीं हुई, वह पूर्ण होने पर ही हमें शांति और आनंद का समय मिलेगा । कल हम भट्टारिका के मंदिर में मिले थे, परंतु अपने - अपने कार्य की चिंता होने से दो दिन में किये हुए कार्य संबंधी वार्तालाप करने का विशेष समय नहीं मिला । इस समय महाराज भी हमारे प्रयाण की तैयारी कराने गये हैं; इसलिए अब एकांत में उन बातों को जानना चाहिए, महाबल कुमार इसके आगे कुछ कहना ही चाहता था इतने में ही वहां पर मलयासुंदरी की धायमाता वेगवती आ पहुंची । उसने मलयासुंदरी के पास आकर पूछा -
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