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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
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विचित्र स्वयंवर प्रातःकाल के ऐसे सुहावने समय में महाबल कुमार और पुरुषवेष धारक मलयासुंदरी वहां से उठकर समीपवर्ती गोला नदी पर आये। वहां पर दंतधावन तथा मुख प्रक्षालनादि कर वे वापिस उसी आम वृक्ष के नीचे आये और वहां जाकर उन्होंने कुछ पके हुए आम्रफल खाये । इसके बाद वहाँ से चलकर गोला नदी के किनारे- किनारे वे भट्टारिका देवी के मठ पर आ पहुंचे। वहां पर बहुत समय से खड़ी की हुई काष्टफलियों को देखकर कुमार कुछ सोच विचार के मस्तक हिलाता हुआ राजकुमारी से बोला- "सुंदरी! मुझे अब से मुख्य तीन काम करने होंगे; जिसमें पहला कार्य तुम्हारे वियोग से मरते हुए तुम्हारे माता पिता के प्राणों की रक्षा करना । दूसरा तुम्हारे माता पिता की संगति से अनेक राजकुमारो के समक्ष स्वयंवर में तुम्हारा पाणिग्रहण करना और तीसरा लक्ष्मीपूंज हार को स्वाधीनकर माता को देकर, उनके प्राण बचा के उनके समक्ष की हुई अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण करना । सुंदरी ! इन तीनों कार्यों में मुझे तुम्हारी पूर्ण सहायता लेनी होगी । लक्ष्मीपूंज हार को स्वाधीन करना यह कार्य तुम्हें अपने जिम्मे लेना होगा । यह तुम्हारा पुरुषवेष अभी कुछ समय तक ऐसा ही रखना पड़ेगा । तुम्हें यहां से मगधावेश्या के घर जाना चाहिए । क्योंकि अभी तक कनकवती वहां पर ही होगी। वहां जाकर तुम्हें ऐसा आचरण करना चाहिए कि जिससे कनकवती के पास रहा हुआ वह लक्ष्मीपूंज हार तुम्हारे हाथ आ जायें । एक बात विशेषतया ध्यान रखना, नगर में इस तरह प्रवेश करना कि कहीं पर राजपुरुष तुम्हारी और विशेष ध्यान से न देख पावे। मगधावेश्या के घर जाकर आज की सारी रात तुमने कनकवती और हार की खोज में निकालनी। कल का सारा दिन भी वहां पर ही बिताना और संध्या के समय वापिस यहां ही आना । मैं भी निर्धारित कार्य यथोचित करके वापिस इसी भट्टारिका के मंदिर में कल शाम को आऊंगा । दोनों का कल संध्या के समय यहां पर ही मिलाप होगा । मैं यहां से इस वक्त स्मशान भूमि की ओर जाता हूं, क्योंकि तेरे वियोग से दुःखित हुए तेरे माता पिताओं का रक्षण करना यह हमारा पहला कर्तव्य है । तुम्हारे हाथ में जो यह नामांकित अंगुठी है; यह तुम मुझे दे दो, क्योंकि शहर में इसे तुम्हारे हाथ में देख चोर की भ्रांति से तुम्हें कोई उपद्रव न कर सके ।"
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