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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र स्वयंवर से राजकुमारी की यह नामांकित अंगूठी हमें मिली है । यों कहकर उन्होंने वह नामांकित अंगूठी महाराज के हाथ में समर्पण की । राजा कुमारी का वह मुद्रारत्न देख मस्तक हिलाने लगा और निर्निमेष दृष्टि से उस सिद्धज्योतिषी की ओर देखने लगा । यह देख उत्साहपूर्वक हिम्मत से सिद्धज्योतिषी बोला-'महाराज! ज्ञानी का बतलाया हुआ भविष्य कभी अन्यथा नहीं होता ।'
लंबी सांस लेते हुए राजा ने कहा – 'ज्ञानी महाशय! कुमारी का यह मुद्रारत्न मदोन्मत्त हाथी के पेट में किस तरह गया होगा? इससे मुझे निराशाजनक शंका पैदा होती है । सिद्धज्योतिषी बोला - "राजन्! हाथी के पेट में मुद्रारत्न जाने का रहस्य मेरे ज्ञान में स्पष्टतया मालूम नहीं होता, यथापि यह सर्वप्रभाव आपकी कुलदेवी का ही मालूम होता है । यह बात सुनकर राजा को हर्ष के साथ संतोष पैदा हुआ और उसने इस प्रमाण के मिलने पर स्वयंवर मंडप की तमाम तैयारी उत्साहपूर्वक प्रारंभ कर दी । स्वयंवर मंडप तो प्रायः प्रथम ही संपूर्णसा तैयार हो चुका था, परंतु बीच में इस दुर्घटना का विघ्न पड़ने के कारण कुछ थोड़ा सा काम शेष रह गया था, वह अब मुद्रारत्न की प्राप्तिजन्य प्रतीति से पूर्ण होने लगा । दूसरी तरफ राजा और राजकुमारों के ठहरने के लिए निवास स्थान भी तैयार कराये गये । स्वयंवर मंडप की सर्व तैयारियाँ होती हुई देखकर शहर के बहुत से मनुष्य तरह - तरह की बातें करते थे । देखो! राजा की कितनी मूर्खता है? कन्या को मरवाकर स्वयंवर मंडप रचा रहा है । यदि कदाचित् ज्योतिषी के कहे मुजब राजकन्या न मिली तो स्वयंवर में आये हुए राजकुमारों को वह क्या उत्तर देगा? इससे देश भर में राजा की कितनी लघुता होगी इस बात का उसे कुछ खयाल है? अगर ऐसा हुआ तो निराशा और अपमान से क्रोधित हो देश देशांतर से आये हुए वे राजकुमार राजा को कुछ उपद्रव न करेंगे? कोई उत्तर देता भाई! इस समय इस विषय में युक्तायुक्त कुछ नहीं कह सकते। समय आने पर सब कुछ देखा जायगा।
संध्या के समय चारों दिशाओं से अनेक राजा और राजकुमार अपने -
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