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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र स्वयंवर हम आपको अपना सर्वस्व भी दे डालें तो भी वह कम होगा" सिद्ध ज्योतिषी बोला - "सज्जनो! मैं तुमसे प्रत्युपकार में एक कौड़ी तक न लूंगा । क्योंकि उपकार के बदले में यदि कुछ ले लिया जाय तो वह उपकार कैसा? सिद्ध ज्योतिषी के निःस्पृह वचन सुनकर राजा तथा प्रजा को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्हें उसके वचनों पर विशेष श्रद्धा जम गयी । राजा बोला - "सिद्धज्योतिषी! स्तंभ के पूजन का आप जो कुछ विधि बतलाते हैं वह सब कुछ आपको ही करना होगा । जब तक आपके कथनानुसार तमाम बातें न मिलेंगी तब तक आपको मेरे पास ही रहना होगा । सिद्धज्योतिषी ने महाराज वीरधवल की आज्ञा शिरोधार्य की। महाराज वीरधवल ने विशेष आश्चर्य से पूछा, ज्ञानीमहाशय! आशाजनक ये तमाम बातें तो आपने हमें बतलायीं परंतु ज्ञान दृष्टि से देखकर कृपाकर यह भी बतलाइए कि मेरी पुत्री मलयासुंदरी का पाणिग्रहण किसके साथ होगा? सिद्धज्योतिषी कुछ देर ध्यानस्थ सा रहकर गंभीरता से बोला - पृथ्वीस्थानपुर के नरेश महाराज सूरपाल का पुत्र महाबल कुमार आपकी पुत्री मलयासुंदरी का पाणिग्रहण करेगा । वर कन्या का योग्य मिलाप होगा यह समझकर वहां पर रहे हुए तमाम लोग सिद्धज्योतिषी के अद्भुत ज्योतिषज्ञान की प्रशंसा करने लगे।
अब पूर्ण मध्याह्न का समय होने आया था । अतः सुबुद्धि मंत्री ने महाराज वीरधवल से हाथ जोड़कर प्रार्थना की। "महाराज! अब समय बहुत हो गया। आपको राजमहल में पधारना चाहिए।" मंत्री के वचन सुन सिद्धज्योतिषी को साथले महाराज वीरधवल ने बड़े समारोह के साथ याचकों को दान देते हुए नगर में प्रवेश किया । स्नानादि से निपटकर महाराज ने प्रथम सिद्ध ज्योतिषी को भोजन कराकर फिर आप भोजन किया। फिर ज्योतिषी के साथ वार्तालाप करते हुए दिन के दोनों पिछले पहर और कुछ निद्रा लेने पूर्वक सारी रात्रि का समय राजा ने सानंद व्यतीत किया । प्रातःकाल होते ही हाथी की लीद छानने वाले मनुष्य महाराज के पास आकर हाथ जोड़ निम्न प्रकार से निवेदन करने लगे।
महाराज! हम विशेष कुछ नहीं जानते, हाथी की लीद छानते हुए उसमें
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