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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र स्वयंवर आकर स्वयंवर मंडप में बिराजमान हुए होंगे; उस समय हजारों लोगों के देखते
दुपहर के बाद अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से विभूषित राजकुमारी का आप सबको दर्शन होगा । राजन्! आप उत्साहपूर्वक स्वयंवर मंडप तैयार करावें । देश देशांतर से आनेवाले राजकुमारों को कुमारी के मर जाने की आशंका से मत रोकिए। यदि आपको मेरे कथन पर विश्वास न आता होतो ज्ञान दृष्टि से देखकर अपने वचनों की प्रतीति दिलाने के लिए आपकी मर्जी हो तो मैं कुछ प्रमाण भी बतला सकता हूँ। राजा की सम्मति होने से सिद्धज्योतिषी कुछ देर ध्यानस्थ रहकर बोला - "महाराज ! राजकुमारी के हाथ का नामांकित मुद्रारत्न कल ही आपके हाथ में आना चाहिए । चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल में नगर के पूर्व दरवाजे के पास राजकुमारों की परीक्षा के लिए लगभग छह हाथ प्रमाण लंबा और अनेक प्रकार के रंग विरंगो से चित्रित एक स्तंभ कहीं से आपकी गोत्रदेवी लाके रखेंगी । वह स्तंभ आपको स्वयंवर मंडप में स्थापन करना होगा; उसके पास वज्रसार नामक धनुष जो तुम्हारे घर मौजूद है बाण सहित पूजनकर रखना होगा । उस धनुष पर बाण चढ़ाकर जो मनुष्य उस स्तंभ को भेदन करेगा वही राजकुमारी का पाणिग्रहण करेगा । उस स्तंभ की कुछ पूजन विधि भी करनी होगी । हे राजन्! ये तमाम बातें मैंने अपने ज्योतिष ज्ञानबल से जानकर बतलायी है । मेरे बतलाये हुए इन प्रमाण या निशानियों में फर्क पड़ने पर आप मेरे कथन में अविश्वास कर सकते हैं ।
सिद्ध ज्योतिषी ने पूर्वोक्त तमाम बातें ऐसे ढंग से कहीं जिससे राजा और वहां पर रही हुई समस्त जनता के दिल पर उसका बड़ाभारी प्रभाव पड़ा । राजा के हृदय में विश्वास जमने के साथ ही जनता को इतना आनंद हुआ कि हजारों मनुष्य हर्षित हो मुक्त कंठ से उस सिद्ध ज्योतिषी की प्रशंसा करने लगे और मारे खुशी के लोगों ने अपने शरीर से कीमती वस्त्राभरण उतारकर उसके सामने ढेर लगा दिया । सब लोग हाथ जोड़कर उस निमित्तज्ञान शिरोमणि सिद्धज्योतिषी से बोले-" महानुभाव ! आप कृपा कर हमारी यह तुच्छ भेंट स्वीकार करें । इस समय अपने जो हम पर उपकार किया है, उसके बदले में यदि
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