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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र घटना स्त्री स्वभाव के कारण डाह से यह हम पर अवश्य ही कुछ न कुछ आपत्ति लायगी, परंतु खैर हरकत नहीं सब ठीक हो जायगा ।
जिस वक्त महाबल और मलयासुंदरी अपनी असावधनता का पश्चात्ताप कर रहे थे, उस वक्त कनकवती उनके कमरे के द्वार पर ताला लगाकर महाराज वीरधवल के पास गयी और उसने वहाँ जाकर आंखों से देखा और कानों से सुना हुआ तमाम वृत्तान्त राजा से इस ढंग से कहा कि जिसके सुनने से राजा एकदम क्रोधित हो उठा । कनकवती के मुख से अपनी पुत्री का स्वच्छंदी आचरण सुनते ही राजा के नेत्र क्रोध से लाल हो गये । वह उसी वक्त अनेक सुभटों को साथ ले 'पकड़ो मारो' वगैरह शब्द बोलता हुआ तत्काल मलयासुंदरी के मकान के सामने आ पहुंचा । सुभटों ने महल को चारों तरफ से घेर लिया।
विचित्र घटना अघटित घटितानि घटयति, सुघटित घटितानि जरजरी
कुरुते । विधिरेव तानि घटयति, यानि पुमान्नैव चिन्तयति ॥१॥
दूर से राजा के शब्द सुनकर मारे भय के राजकुमारी थर्रा गयी । उसके दुःख का पार न रहा, धैर्य टूट गया । ऐसे सुंदर आकृतिवाले कुमार के प्राण कैसे बचेंगे? इस नररत्न को नष्ट कराने वाली मुझ विष कन्या को धिक्कार हो! हाय! प्रथम मिलाप में ही मैं अपने प्यारे पर जुल्म ढानेवाली बनी! कुमारी को चिंतासागर में डूबी देख महाबल ने उसे धीरज दी । सुंदरी! निश्चित रहो मेरा कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता । जो मनुष्य ऐसे भयंकर स्थान में प्रवेश करने का साहस रखता है उसके पास अपने रक्षण का उपाय भी अवश्य होता है' यों
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