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विचित्र घटना
श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
असंभवित सा था, वही कार्य पुण्ययोग से अब अपने स्वाधीन सा ही प्रतीत होता है । अब पिता की आज्ञा पाकर मैं शीघ्र ही चंद्रावती को जाऊंगा । स्वयंवर में आये हुए अनेक राजकुमारों का मानमर्दनकर, मलयासुंदरी का पाणिग्रहणकर के मैं अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण करूंगा।' इत्यादि अनेक विचार लहरियों से हर्षाकुल
राजकुमार की तरफ राजा ने दृष्टिपात किया । "बेटा महाबल! तूं आज ही स्वयंवर पर चंद्रावती जाने की तैयारी कर । साथ में खूब सेना ले जाना । चंद्रावती नरेश बड़ा राजा है, एवं वह हमारा मित्र राजा होने से विशेष माननीय है ।'
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कुमार - (हाथ जोड़कर, मस्तकर झुका) "पिताजी! आप की आज्ञा शिरोधार्य है । आप जब फरमायें तभी जाने के लिए तैयार हूं ।"
राजा - (प्रधानमंत्री की तरफ देखकर ) "मंत्रीवर ! सेनापति को आज्ञा करो, कुमार के साथ चंद्रावती जाने के लिए सेना तैयार करें । महाबल की और देखकर, बेटा! चंद्रावती से लाया हुआ लक्ष्मीपूंज हार भी अपने साथ लेते जाना ।”
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महाबल - 'पिताजी! मैं आपसे एक प्रार्थना करना चाहता हूं और वह यह है जब मैं निद्रा में होता हूं तब अदृश्य रूप से मेरे कमरे में आकर मुझे कोई प्रतिदिन उपद्रव करता है । कभी वस्त्र, शस्त्र, कभी आभूषण या अन्य कोई उत्तम वस्तु जो मेरे पास होती है, उसे ले जाता है । कभी भयंकर हास्यकर वह मुझे डराने का प्रयत्न भी करता है । कल संध्या के समय माताजी ने वह लक्ष्मीपूंज हार रखने के लिए मुझे दे दिया था, परंतु कल ही रात्रि को मेरे कमरे में से उसे किसी ने निकाल लिया । हार गायब हुआ जानकर, माताजी को अत्यंत दुःख हुआ, यह देख मेरा हृदय भी दुःख से व्याकुल हो रहा है । पिताजी! माता को शांत करने के लिए, मैंने उनके सामने यह प्रतिज्ञा की है "यदि पांच दिन के अंदर मैं उस हार को वापिस न ला दूं तो अग्नि में प्रवेशकर मरणांत प्रायश्चित्त करूंगा । माताजी ने भी ऐसी ही प्रतिज्ञा की है ।" अगर वह हार मुझे न मिला तो मैं भी अपने प्राण खो दूंगी। मेरी तमाम वस्तुओं को छिपकर हरण करनेवाला जन्मान्तर का वैरी भूत या राक्षस होना चाहिए । पिताजी ! मैं चाहता
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