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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
हस्योद्घाटन मलयासुंदरी दुःख से अस्थिर चित्त की अवस्था में होकर बोलने लगी - 'पिताजी! निर्दोष बालिका पर निष्कारण ऐसा प्राणघातक कोप किसलिए? प्यारे पिता! अनेक भूले होने पर भी आज पर्यन्त आपसे ऐसा अविचारित कार्य कभी नहीं हुआ आज आपको क्या किसी ने भरमा दिया है? इस समय पुत्रीपन का निःस्सीम प्रेम कहाँ चला गया? माता चंपकमाला! आज आप भी पत्थर के समान कठोर हृदया बनकर निस्नेहा हो गयी! यदि आपको मुझसे कुछ अपराध ही हुआ मालूम होता है, तो क्या माता - पिता संतान के एक अपराध को क्षमा नहीं कर सकते? मुझ पर असीम प्रेम रखनेवाले हे भ्राता मलयकेतु! क्या ऐसे समय तुम भी मौन धारण किये बैठे हो! इस विषमता का क्या कारण है? इतना भी मुझे नहीं बतलाया जाता? मैंने ऐसा कौनसा भयंकर अपराध किया है जिससे आज तमाम परिवार का मुझ से प्रेम नष्ट हो गया? मैं मानती हूँ आज मेरा पुण्य सर्वथा नाश हो चुका है। इसीसे प्राणों से प्यारी समझने वाला सारा राजकुल आज मुझे दुश्मन समझकर निष्ठुर बन गया है। पूर्वोक्त निष्फल विचारों की उधेड़ बुन में उसने यह निश्चय किया कि एक दफे मैं पिताजी से प्रार्थना करूँ, वे मुझे मेरा अपराध मालूम करें । फिर जो मेरे भाग्य में होगा सो हो । यह सोचकर उसने अपनी वेगवती नामक दासी को बुलाकर अपना सारा अभिप्राय कह सुनाया और अपनी तरफ से प्रार्थना करने के लिए उसे राजा के पास भेजा।
वेगवती - महाराज वीरधवल के पास आकर हाथ जोड़ नम्रतापूर्वक विज्ञप्ति करने लगी "महाराज मलयासुंदरी मेरे द्वारा आपसे हाथ जोड़कर नम्र प्रार्थना करती है कि कृपाकर मुझे यह बतायें कि मुझ हतभागिनी से आपका क्या अपराध हुआ है! यदि मुझे मृत्यु से पहले अपना अपराध मालूम होगा तो मेरे चित्त को संतोष होगा मैं समझूगी पिताजी ने मुझे मेरे ही अपराध की शिक्षा दी है । आपकी दी हुई प्राणदंड की शिक्षा मुझे शिरोधार्य है, परंतु प्राण त्याग ने से पहले यदि आपकी आज्ञा हो तो अंतिम समय एक दफे आपके और माताजी के दर्शन करना चाहती हूँ। अगर यह बात आपको बिल्कुल मंजूर न हो तो मैं दूर रही हुई ही आपको, माता चंपकमाला और सौतेली माता कनकवती को अंतिम नमस्कार करती हूँ।
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