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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
हस्योद्घाटन
राजा का अंतिम निश्चय सुनकर मलयासुंदरी ने भी धैर्यपूर्वक प्राणत्याग का निश्चय कर लिया । अब वह पंच परमेष्टी मंत्र का जाप करती हुई शहर के बाहर रहे हुए अंधकूप को लक्ष्य में कर निर्भयता से अपने रक्षक पुरुषों के आगे - आगे चल पड़ी। राजकुमारी की यह स्थिति देखकर, आरक्षक लोगों के हृदय में भी दया का संचार होता था । उसके सखीवर्ग की स्थिति बहुत ही करुणा जनक दिख पड़ती थी । वे चौधारा आंसुओं से मुख धोती हुई रुदन करती थीं। हे हृदय ! राजकुमारी की ऐसी दशा देखकर भी तूं किस तरह जीवन धारण किये हुए है? हे कुमारी! तेरे मधुर आलाप, सारगर्भित वार्ता और हृदय की सरलता से प्राप्त होनेवाला आनंद अब हम किससे पायेंगी? हे देवी! यह तेरी दशा तेरे बदले हमें क्यों न प्राप्त हो गयी? हे दिव्य गुण धारण करनेवाली, सरल बालिका ! तेरे बिना इस शहर में रहना हमारे लिये सर्वथा असंभवित होगा? इस प्रकार बोलकर उसे हृदय से चाहनेवाली उसकी तमाम सखियाँ विलाप करके देखने वाले मनुष्यों को भी रुलाती थीं ।
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राजा ने अपनी इकलौती कुमारी को गुस्से में आकर मार डालने की आज्ञा दे दी है यह बात फैलने पर शहर में कोलाहल सा मच गया। शहर के बड़ेबड़े आदमी राजा के पास आकर विनयपूर्वक प्रार्थना करने लगे - "हे नरनाथ! यह क्रोध करने का स्थान नहीं है। बच्चों से अपराध होने पर भी क्या उन्हें प्राणदंड की शिक्षा दी जा सकती है? हे चतुर नराधीश ! यदि आपको ऐसा ही अनर्थ करना था तो यह स्वयंवर मंडप का आडंबर किसलिए रचा था? कन्या के विवाह के लिए उत्सुक होकर आये हुए सैंकड़ों राजकुमारों को आप क्या जवाब देंगे? इत्यादि अनेक प्रकार से प्रजा के आगेवानों ने राजा को बहुत कुछ समझाया; परंतु क्रोधान् राजा अपने विचार से पीछे न हटा। नगर की औरतें बोलती थीं - हाय, महारानी चंपकमाला कुमारी की माता होने पर भी अपनी संतान पर ऐसा जुल्म करते हुए राजा को मना नहीं करती? जितने मुंह उतनी ही बातें होती थीं, परंतु परिणाम में शून्य ही था ।
अनेक राजपुरुषों से वेष्टित राजकुमारी उस अंधकूप के किनारे पर आ
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