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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
हस्योद्घाटन महाराज! सचमुच ही कुमारी सरल स्वभावी है । उसे राज्य लोभी धूर्त और अपने बल से गर्वित महाबल कुमार ने भरमाकर अपने वश में कर लिया है, इसी कारण उसने इस प्रकार का भयंकर राजद्रोह और कुलघातक विचार किया है । प्राणनाथ! स्त्रियों की वाणी मधुर होती है परंतु उनकी बुद्धि बड़ी तुच्छ होती है । मुख में कुछ और हृदय में कुछ ओर ही होता है । मूर्ख स्त्रियाँ तुच्छ लालसा में फंसकर अपने माता - पिता, भाई आदि समस्त कुटुंब को भयानक कष्ट में डाल देती हैं, इसी कारण यह गुप्त रहस्य मैंने आपके सामने निवेदन किया है। अब आपको जो उचित मालूम दे सो करें। यदि आपको मेरे इन वचनों पर विश्वास न हो तो आप इस समय कुमारी के पास से हार मांगे, जो उसने आपको हार दे दिया तो उस दिन के समान आप मुझे सदा के लिए 'झूठी और ईर्षालु ही समझिए' अन्यथा मेरा कथन सत्य समझकर आप अपने और नष्ट होते राज्य को बचाने का उपाय करें । इत्यादि अनेक असत्य वचनों से राजा को ऐसा कुपित कर दिया कि क्रोधायमान होकर राजा ने तत्काल ही हमें वहां से विसर्जन किया और कुमारी की माता चंपकमाला को कुछ मसवरा करने के लिए बुला भेजा।
पाठक महाशय! आपके दिल में इस कथानक के मुख्य नायक नायिका महाबल कुमार और मलयासुंदरी का वृत्तांत जानने की अतीव जिज्ञासा पैदा हो रही होगी, इसलिए उसे पूर्ण करने के वास्ते पिछले परिच्छेद में आम के नीचे बैठे हुए महाबल और मलयासुंदरी के पास ही हम इस समय आपको लिए चलते हैं। आठवें परिच्छेद के अंत में आपने महाबल और राजकुमारी की बातें सुनी है।
पूर्वोक्त विचारकर कुमार ने अपने केशपाश में से एक गुटिका निकाली और उसे उसी आम फल के रस में घिसकर कुमारी के मस्तक पर तिलक कर दिया। उस गुटिका के प्रभाव से मलयासुंदरी का पुरुष रूप बन गया । पुरुष रूप देख महाबल बोला – 'राजकुमारी! जबतक तुम्हारे मस्तक पर किया हुआ यह तिलक मेरे थूक से न मिटा दिया जाय तब तक तुम्हारा यह पुरुष रूप ऐसा ही कायम रहेगा। अभी रात्रि बहुत है । उन्मार्ग से कोई सामने मनुष्य चला आ रहा
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