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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
हस्योद्घाटन
मालूम होता है । जब तक उसका भली भांति पता न लग जाय और अबसे जो आगे ऐसे प्रसंग आयेंगे उनमें तुम्हारा ऐसा ही रूप बनाने की आवश्यकता है ।" मलया - "राजकुमार! आपको जैसे उचित मालूम हो वैसे करें । मैंने तो यह शरीर जन्मपर्यंत आपको समर्पण किया हुआ है ।"
महाबल - "तुम्हारा कहना सही है, परंतु इस समय हमें बिल्कुल मौन रहना चाहिए । देखो वह व्यक्ति नजदीक ही आ रहा है । तुम्हें यह बताए देता हूं कि वह मनुष्य चाहे जो हो परंतु तुम्हें सर्वथा निर्भीक रहना चाहिए । इस प्रकार राजकुमारी को धैर्य देकर महाबल सामने से आनेवाले व्यक्ति की ओर देखने लगा । देखते ही देखते वह व्यक्ति शीघ्र गति से बिल्कुल नजदीक आ पहुंचा । नजदीक आने से कुमार को यह मालूम हो गया कि उनके सामने आनेवाला व्यक्ति पुरुष नहीं किन्तु भय से कांपती हुई वह एक युवती स्त्री है ।
पाठक महाशय! अब आप भली प्रकार समझ गये होंगे, कि लक्ष्मीपूंज हार को प्राप्तकर, सौतेली माता कनकवती ने निरपराध मलयासुंदरी को संकट में डालने के लिए सोमा दासी को साथ ले जाकर, महाराज वीरधवल को बनावटी बातों से कोपायमान कर दिया था ।
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महारानी चंपकमाला को बुलाकर राजा ने रानी कनकवती से सुनी हुई तमाम बातें कही, परंतु चंपक माला को उन बातों पर बिल्कुल विश्वास न आया। जब राजा ने हार के विषय में सुनाया तो रानी ने यह बात मंजूर कर ली कि हाँ यदि हार उसके पास न मिले तो इन बातों पर विश्वास करने में कोई हरकत नहीं है । रानी का अभिप्राय प्राप्तकर राजा ने उसी वक्त राजकुमारी को बुलवाया और उसके पास से लक्ष्मीपुंज हार मांगा। पहले तो कुमारी से कुछ भी उत्तर न बन सका, परंतु वह कुछ सोच कर बोली, पिताजी ! उस हार को मेरे पास से किसी ने चुरा लिया मालूम होता है । कई रोज से ढूँढ़ने पर भी वह नहीं मिलता । यह उत्तर सुनते ही मारे क्रोध के राजा के नेत्र लाल शूर्ख हो गये, होठ फड़कने लगे वह तिरस्कार पूर्वक जोर से बोल उठा 'पापिनी ! मेरे सामने से दूर चली जा, मुझे अपना मुंह न दिखा' तेरे रचे हुए प्रपंचों का मुझे सब पता लग
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